झूठी प्रीत
सविता अग्रवाल ‘सवि’
दर्द भरे हैं मेरे गीत
बुझा बुझा सा है संगीत
वाद्य तार सब टूट गए हैं
मानो मुझसे रूठ गए हैं
अश्रु छलकता है प्रतिपल
आह भरा है क्रंदन स्वर
पतझर ने थामा है हाथ
सूख गया उपवन मधुमास
छिपा है सूरज ना कोई आस
बादल से भी बुझे ना प्यास
अनचाही हँसी का मचा है शोर
अकिंचन मैं, नहीं होती भोर
राह देख आँखें अँसुआई
उर व्याकुल, वेदना अकुलाई
व्यर्थ हुए सारे मनुहार
पथ में काँटे बिछे अपार
अमा रात ने खोला द्वार
रजनी लाई विरह उपहार
दे दूँगी सब तुमको मीत
पास रखूँगी झूठी प्रीत।