पुस्तक की आत्महत्या
डॉ. ऋतु शर्मा
पात्र: न्यायाधीश (जज साहब), वकील (लेखक), वकील (विपक्ष) मोबाइल, सोशल मीडिया, आई पैड, लेखक, जनता (लेखक, पेन, काग़ज़, पुस्तकें, प्रकाशक)
अंक एक
(पर्दा खुलता है। न्यायालय के कमरे में जज साहब बैठे हैं। दो अर्दली उनके आस-पास बड़ी सी मूठ वाली लाठियाँ लेकर खड़े हैं। नीचे एक टेबल पर एक क्लर्क बैठा है टाइप राईटर के साथ। सामने की दो टेबल पर वकील बैठे हैं अपने मुवक्किलों के साथ। पीछे कुर्सियों पर जनता बैठी है)
जज साहब:
आज की कार्यवाही शुरू कि जाए।
अर्दली:
जज साहब आज का मुक़दमा श्रीमान मोबाइल और लेखक, पैन और काग़ज़ महोदय के बीच है। लेखक महोदय का कहना है कि उनकी पुस्तकों ने श्रीमान मोबाइल के दबाव में आकर पुस्तकालय की अलमारी में आत्महत्या कर ली। उनके हाथों में उनका लिखा एक पत्र मिला है। जिसमें उन्होंने अपनी अत्महत्या का ठेकेदार श्रीमान मोबाइल को ठहराया है।
जज साहब:
दोनों को आज की कार्यवाही के लिए बुलाया जाए।
अर्दली:
श्रीमान मोबाइल और उनके वकील व लेखक और उनके वकील कोर्ट में हाज़िर हों ऽ ऽ ऽ!
(दोनों वकील कोर्टरूम में अपनी-अपनी जगह से उठ कर जज साहब को नमस्कार करते हुए कहते हैं)
दोनों वकील:
हम हाज़िर हैं जज साहब।
जज साहब:
कार्यवाही शुरू की जाए।
(लेखक का वकील अपनी जगह से उठता है और बोलना शुरू करता है)
वकील:
नमस्कार जज साहब, यह श्रीमान मोबाइल यहाँ बहुत सज-धज कर खड़े हैं; यह एक हत्यारे हैं। इन्होंने और इनके फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, खेल के ऐप्स, सभी भाइयों ने मिल कर मेरे क्लाइंट श्रीमान लेखक की पुस्तक को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया है। इनके कारण वह बेचारी कई महीनों पुस्तकालयों, पुस्तक की दुकानों में एक ही जगह खड़ी-खड़ी थक गई थी। उस पर धूल जमने लगी थी। एक जगह खड़ी-खड़ी वह इतनी बीमार हो गई थी कि उसे दीमक खाने लगी थी। अब आप ही बताइए जज साहब ऐसे में वो बेचारी आत्महत्या न करती तो क्या करती? इन मोबाइल महाशय ने सिर्फ़ लेखक की पुस्तक को ही आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं किया बल्कि उसके जैसे कई अन्य लोगों के साथ-साथ इनके लुभावने खेल के ऐप्स ने मनुष्यों को भी आत्महत्या करने के लिए उकसाया है। यह और इनके भाई हत्यारे हैं जज साहब। मेरी आपसे विनती है इनको कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। मैं इस बात गवाही के लिए अपने क्लाइंट श्रीमान लेखक को न्यायालय के कटघरे में बुलाने की आज्ञा चाहता हूँ।
जज साहब:
आज्ञा है। (अपने पास रखें पेपर पर पेन से कुछ लिखते हैं)
अर्दली:
श्रीमान लेखक न्यायालय के कटघरे में हाज़िर हो ऽ ऽ ऽ!
(लेखक कटघरे में हाथ जोड़कर खड़े हैं)
(अर्दली एक लाल कपड़े में लपेटी हुई गीता लाता है और लेखक को सत्य वचन की शपथ लेने के लिए बहुत कहता है)
अर्दली (लेखक से):
आप गीता पर हाथ रख कर कहिए, आप जो कहेंगे सच कहेंगे। सच के सिवा कुछ नहीं कहेंगे।
लेखक:
मैं गीता पर हाथ रख कर यह वचन देता हूँ कि मैं जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा। सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा।
वकील (लेखक):
श्रीमान लेखक आप जज साहब को यह बताइए कि आप जब पुस्तकालय पहुँचे तब आपने क्या देखा?
लेखक:
जज साहब आप तो जानते ही हैं कि हमारे देश में पुस्तकों का कितना मान-सम्मान है। भारत में पुस्तकों को माँ सरस्वती का रूप मान कर पूजा जाता है। मैं भी माँ सरस्वती के भक्तों में से एक हूँ। जज साहब, किसी पुस्तक को लिखना ठीक वैसा ही होता है जैसे एक माँ अपने बच्चे को जन्म देती है। मैंने भी उतने ही प्रयास और प्रेम से अपनी पुस्तकों को जन्म दिया था। फिर उन पुस्तकों को जब पुस्तकालय व पुस्तक विक्रेताओं ने बहुत सम्मान के से ख़रीदा और उसे अपनी अलमारियों में सजाया, तो मुझे अपने कार्य पर बहुत गर्व का अनुभव हुआ। जब पुस्तकें पाठकों द्वारा ख़रीदीं और पढ़ी जाती थीं तब मैं बहुत ख़ुश होता था। क्योंकि मेरी पुस्तकें पाठकों के ज्ञानवर्धन, व मनोरंजन के साथ-साथ उनके अक्षर ज्ञान को भी बढ़ाती थीं। उस दिन जब मैं कुछ दिनों बाद अपनी पुस्तकों का हाल-चाल पूछने पुस्तकालय पहुँचा, तो वहाँ की सभी पुस्तकें बहुत रुआँसा-सा चेहरा बना कर उदास खड़ी थीं। मैंने उनसे उनके उदास रहने का कारण पूछा तो उन्होंने अलमारी की दूसरी तरफ़ इशारा किया। मैंने देखा वहाँ मेरी पुस्तक अलमारी में धूल में लथपथ पड़़ी थी।
मैंने पास जा कर देखा तो मेरी पुस्तक ने अलमारी में दम तोड़ दिया था। नई तकनीक के आने से सबसे ज़्यादा पुस्तकें ही घायल हुई है जज साहब।
जिस दिन से श्रीमान मोबाइल ने अपने नये नये लुभावने ऐप्स से ख़ुद को सजाया है उस दिन से मेरी पुस्तक बीमार होने लगी थी। जहाँ लोग माँ सरस्वती रूप उसे मानकर उनकी पूजा करते थे उन्हीं लोगों ने धीरे-धीरे उससे मिलना और पढ़ना बंद कर दिया। क्योंकि मोबाइल महाशय ने उसकी एक कॉपी बना कर अपने पास रख ली थी। इन्होंने अपने साथियों सोशल मीडिया के साथ मिल कर मेरी पुस्तक की हत्या कर दी है। मेरी आपसे विनती है मेरी पुस्तकों के हत्यारे को सज़ा दी जाए।
(लेखक का वकील जज साहब से बात करते हुए)
वकील (लेखक):
जज साहब सुना आपने मेरे क्लाइंट लेखक महोदय ने क्या कहा? मैं आपसे आज्ञा लेकर एक और गवाह को कटघरे में बुलाने की आज्ञा चाहता हूँ।
जज साहब:
आज्ञा है।
वकील (लेखक):
(जनता में बैठे श्रीमान पैन की ओर इशारा करते हुए)
श्रीमान पैन आप कटघरे में आएँ और अपनी व्यथा जज साहब को सुनाएँ।
श्रीमान पैन:
जज साहब मैं जो कहूँगा सच कहूँगा सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा। जज साहब यह बिल्कुल सत्य है कि श्रीमान मोबाइल के कारण न सिर्फ़ लेखक महोदय की पुस्तकें आत्महत्या करने पर मजबूर हुई हैं बल्कि मेरे अन्य साथी जैसे, पेंसिल, चॉक, क़लम, और काग़ज़ भी ऐसा करने को मजबूर हो गये हैं। इनके कारण लोग उन्हें भूलने लगे हैं। जिसके कारण बच्चों का अक्षर ज्ञान कम हो रहा है। उनकी हाथ से लिखने की आदत छूटती जा रही है। आज हर बच्चे के पास स्मार्टफोन है। जो धीरे-धीरे हमारा अस्तित्व ख़त्म कर रहा है। यह मोबाइल महोदय हमारे लिए तो घातक हैं ही साथ ही बच्चों के मानसिक विकास में भी अवरोध पैदा कर रहे हैं। इन्होंने पूरी दुनिया को बच्चों की हथेली में समेट कर रख दिया है। इनके कारण घर के बुज़ुर्गों को परिवार होते हुए भी अकेलेपन का त्रास झेलना पड़ रहा है। बच्चे के पास या घर के सदस्यों के पास उनके पास बैठ कर बात करने का समय ही नहीं है। हमारी दादी, नानी की कहानी सुनाने की परंपरा पर यह कुठाराघात कर रहे हैं। मेरा आपसे अनुरोध है कि इन्हें कड़ी सज़ा दी जाए।
(जज साहब अपनी क़लम से पास रखे काग़ज़ पर कुछ लिखते हैं और लेखक के वकील को देखते हुए पूछते हैं)
जज:
आप किसी और को बुलाना चाहते हैं?
वकील (लेखक):
जी जज साहब अगर आपकी आज्ञा तो मैं लिपि महोदया को बुलाना चाहूँगा।
जज साहब:
आज्ञा है।
(वकील जनता में बैठी एक महिला की ओर इशारा करके उसे बुलाता है और कटघरे में खड़ा होने के लिए कहता है)
वकील (लेखक):
श्रीमती देवनागरी लिपि महोदया कृपया आप जज साहब को बतलाएँ की आपको मोबाइल महाशय से कितना ख़तरा है?
(देवनागरी लिपि महोदया कटघरे में खड़ी हैं)
देवनागरी लिपि महोदया:
नमस्कार जज साहब मेरा नाम देवनागरी लिपि है। मेरा जन्म कई हज़ार वर्षों पहले हुआ था। मेरी सहायता से ही सबने लिखना पढ़ना सीखा और आज बड़े-बड़े ग्रंथ, वेद, पुराणों को जिससे भारत का नाम विश्व में प्रदीप्त है वह सब मेरी सहायता से ही लिखे गए हैं। किन्तु आज मुझे खेद है कि आज मोबाइल महाशय के आने से मेरा अस्तित्व भी ख़तरे में है। लोग इन पर जो भी संदेश लिखते-पढ़ते हैं वह सब रोमन लिपि में लिखते हैं। जिससे मुझे बहुत पीड़ा होती है। यह पीड़ा केवल पीड़ा नहीं है यह एक चिंता का विषय है। आपके, मेरे, सबके और हमारी भावी पीढ़ी के लिए भी। जैसा की आपको विदित ही होगा किसी भी देश, की पहचान उसकी भाषा, संस्कृति से होती है। जब मैं ही न बचूँगी तो आप क्या पढ़ेंगे क्या लिखेंगे और भारत की पहचान क्या रह जाएगी? इसलिए जज साहब मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि आप मोबाइल महाशय को सख़्त सज़ा दें।
(अदालत की घड़ी बारह बजे का घंटा बजाती है। जज साहब घड़ी की तरफ़ देखते हुए आदेश देते हैं)
जज साहब:
बारह बज गये हैं। आगे की कार्रवाई दोपहर के खाने के समय के बाद पुनः एक बजे शुरू कि जाएगी।
(सभी लोग जज साहब के आगे सर झुका कर अपनी सहमति प्रदान करते हैं। प्रकाश धीरे-धीरे कम होता हुआ अंधकार में बदलता है। मंच पर पार्श्व में धीमा-धीमा संगीत बजता है)
अंक दो
(न्यायालय में जज साहब अपनी कुर्सी पर बैठे हैं। आस-पास दो अर्दली लंबी मूठ वाली लाठियों के साथ खड़े हैं। धीरे-धीरे मंच पर प्रकाश होता है। दोनों वकील अपने अपने मुवक्किलों के साथ वहाँ उपस्थित है। जनता भी उपस्थित है)
(जज साहब आदेश देते हैं)
जज साहब:
आगे की कार्यवाही शुरू कि जाए।
वकील (लेखक):
जज साहब आपकी आज्ञा कर मैं एक और दुखी की याचना आपको सुनवाना चाहता हूँ।
(जज साहब वकील को देखते हुए)
जज साहब:
आज्ञा है।
(लेखक का वकील जनता में से एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए उसे बुलाता है)
वकील (लेखक):
श्रीमान काग़ज़ महोदय कृपया कटघरे में आ कर अपनी बात कहें।
(श्रीमान काग़ज़ जनता में से उठ कर हाथों को जोड़कर कटघरे में खड़े हैं)
श्रीमान काग़ज़:
जज साहब मेरा नाम काग़ज़ है। मेरा जन्म कई-कई सौ वर्षों पहले हुआ था। तब से लेकर आज तक मैं वेद, पुराण, इतिहास, विज्ञान, से लेकर क़िस्से, कहानी, कवियों व प्रेमियों के दिलों के हाल लिखने के लिए उपयोग होता आया हूँ। लेकिन जब से कम्प्यूटर, आई पैड और मोबाइल महाशय आए हैं। मेरा अस्तित्व कम होता जा रहा हैं। पहले प्रेमी–प्रेमिका मुझे बहुत प्यार से सालों-साल अपने पास सँभाल कर रखते थे। जब मुझ पर इतिहास लिखा जाता था तो मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करता था। जब मुझे धार्मिक किताबों के रूप में उपयोग किया जाता था तब मुझे ईश्वर की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होता था। जब मैं नन्हे बच्चों के कोमल हाथों में जाता था तब मैं अपनी ममता उनपर लुटाता था। चित्रकार अपने मन के उद्गारों को रंग-बिरंगे चित्रकला कर मुझे सजाते थे। किन्तु अब सब कुछ डिजिटल होता जा रहा है। घरों से लेकर पुस्तकालय, सरकारी कार्यालयों, और विद्यालयों तक में मेरी उपस्थिति कम होती जा रही है। मुझे डर है कि यदि सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो एक दिन मेरा अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा। मेरी आपसे विनती है मोबाइल महाशय और इनके साथियों को कड़ी सज़ा दी जाए।
(लेखक का वकील जज साहब की ओर देख कर)
वकील (लेखक):
जज साहब सुना आपने? मोबाइल महोदय ने किस प्रकार अपने साथियों के साथ मिल कर इन बेचारे मासूमों पर अत्याचार किए है।
(जज साहब काग़ज़ पर कुछ लिखते हैं और विपक्ष वकील की ओर देखते हुए पूछते हैं)
जज साहब:
आप विपक्ष के वकील हैं क्या आप अपने क्लाइंट की सफ़ाई में कुछ कहना चाहते हैं?
(विपक्ष का वकील अपनी कुर्सी से उठता है और जज साहब के आगे सर झुका कर अपनी कार्यवाही शुरू करता है)
वकील (विपक्ष):
जज साहब अब तक मेरे क्लाइंटों मोबाइल, आईपैड, सोशल मीडिया पर जितने भी आरोप लगाए गए हैं—वह सब बेबुनियाद हैं। यदि आप आज्ञा दें तो मोबाइल महाशय अपनी सफ़ाई में कुछ कहना चाहते हैं।
जज साहब:
आज्ञा है।
वकील (विपक्ष):
मोबाइल महाशय क्या आपने सच में श्रीमान लेखक की पुस्तक को आत्महत्या करने पर मजबूर किया था?
मोबाइल:
जज साहब मैं वकील साहब और उनके क्लाइंट लेखक महोदय की बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। जिस दिन से मेरा जन्म हुआ मैंने हमेशा लोगों की मदद की है। जैसे-जैसे समय बदलता गया मेरा रंग-रूप और मेरी भूमिका भी बदलती रही। आज मैं नई-नई तकनीक से बहुत सम्पन्न हो गया हूँ। मेरे रंग रूप और उपयोगिता में बहुत सुधार आये हैं। मैंने किसी को नहीं कहा कि वह पुस्तक से दोस्ती न करे।
वकील (विपक्ष):
लेकिन पुस्तक ने आत्महत्या करने से पहले एक पत्र लिखा था जिसमें उसने लिखा उसके मरने का कारण मोबाइल है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आप ही लेखक की पुस्तक के हत्यारे हैं। आपकी चमक-धमक और आपके नये-नये खेल के ऐप्स के कारण बच्चे और बड़े सारा दिन आपको ही अपने साथ रखना पसंद करते हैं। जिस कारण सभी लोग बेचारी पुस्तकों से दूर और आपके ज़्यादा पास होते जा रहे हैं।
जज:
महोदय मोबाइल इस विषय में आप कुछ कहना चाहेंगे?
मोबाइल:
जज साहब वकील साहब मेरे ऊपर झूठा इलज़ाम लगा रहे हैं। मैंने किसी की हत्या नहीं की। यहाँ जितने लोग बैठे हैं आप उनसे पूछ सकते हैं। क्या मैंने उनके दूर के रिश्तों को उनके नज़दीक लाने में सहायता नहीं की? एक सैनिक जो घर से कोसों दूर है, क्या मेरे कारण उसके परिवार वाले प्रतिदिन उसके हाल-चाल जान कर ख़ुश नहीं होते? यदि किसी बच्चे को कक्षा में यदि कोई प्रश्न समझ नहीं आया तो क्या वह मेरी सहायता से उसका हल नहीं जानता? रही बात मेरे भाई इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक की तो क्या उनसे लोग आय अर्जित नहीं कर रहे? हमारी वजह से आपको घर बैठे सारी सुख-सुविधा मिनटों में उपलब्ध हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो वह हमारी सहायता से मिनटों में टैक्सी बुक करके अस्पताल जा सकता है। करोना काल में हम ही सबका सहारा बने थे। हमारी सहायता से ही सारे बच्चे शिक्षा ले रहे थे। हमारी तकनीक के कारण लाखों परिवार अपने से दूर देश-विदेश में करोना में फँसे लोगों से सम्बन्ध कर पा रहे थे। जब सब छोड़ जाते हैं तब हम ही एकाकी जीवन में रंग भरते है।
जज साहब इंसान ने ही हमें बनाया है। इंसान हमारे अच्छे व बुरे प्रभाव को भली-भाँति समझते हैं। इसलिए जब इंसान हमें उपयोग करते हैं तब यह उन पर निर्भर करता है कि वह हमारा उपयोग करें या दुर्यपयोग करें। अगर आपको लगता है की आज के युवा हमारे साथ रहना ज़्यादा पसंद करते हैं तो आपको अपनी पुस्तकों को भी इस प्रकार बनाना होगा जिससे पाठक उनकी तरफ़ आकर्षित हो। पुरानी लकीर के फ़क़ीर बन कर नहीं नई तकनीक और नये समय के साथ पुस्तकों की कहानियों को बदलना होगा। चित्रों को आकर्षक बनाना होगा। बच्चों के लिए हमारे उपयोग का समय तय करना होगा। अभिभावकों स्वयं भी पुस्तक पढ़ने की आदत डालनी होगी और बच्चों को भी उपहार में पुस्तकें देना शुरू करना होगा। परिवार के सभी सदस्यों को दिन में एक बार एक दूसरे के साथ समय बिताना होगा। प्रकाशकों को पुस्तकों का सही और प्रचुर मात्रा में प्रचार करना होगा। तभी पुस्तकों और हमारा सही ताल-मेल बनेगा। अब तो आप मानेंगे जज साहब कि मैं निर्दोष हूँ। मैंने जो कुछ भी किया वह सबकी भलाई के लिए किया। पुस्तक की आत्महत्या के लिए मुझे बहुत खेद है। किन्तु इसके लिए मैं ही दोषी नहीं हूँ। यदि पुस्तकों ने मेरे अस्तित्व को अपना शत्रु मान लिया है तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।
(मोबाइल हाथों को जोड़कर कटघरे में खड़ा है। उसका वकील जज साहब को संबोधित करते हुए कहता है)
वकील (विपक्ष):
जज साहब, आपने मेरे निर्दोष क्लाइंट मोबाइल की बात को सुना है। क्या अब भी आपको लगता है? मेरा क्लाइंट मोबाइल और उसके भाई पुस्तकों की आत्महत्या के लिए दोषी है? जज साहब यह तो लोगों की भलाई जानकारी व सहायता के लिए बने थे। लोगों ने इनका ग़लत उपयोग किया और पुस्तकों को अनदेखा कर उनका तिरस्कार किया। लेकिन इसमें इनका कोई दोष नहीं है। इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरे क्लाइंट और उसके साथियों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया जाएँ।
(जज साहब नाक पर चश्मा ठीक करते हुए अपना फ़ैसला सुनाते हुए)
जज साहब:
मैंने दोनों पक्षों के सबूतों, गवाहों की बातों पर ग़ौर किया है और मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि सच में मोबाइल और उसके भाई पुस्तकों की आत्महत्या के लिए दोषी नहीं है। यह सच है कि हमें यह स्वयं ही तय करना होगा की हम आज की आधुनिक तकनीकों का कितना और किस प्रकार प्रयोग करें। साथ ही सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने की आदत डालनी होगी। पुस्तकालयों को इस प्रकार से सुसज्जित किया जाना चाहिए की लोग वहाँ जाएँ और वहाँ बैठ कर आराम से पुस्तकें पढ़ें। मोबाइल महाशय और उनके साथियों को यह अदालत बाइज़्ज़त बरी करती है।
आज की अदालत समाप्त।
(सब लोग जज साहब के फ़ैसले से ख़ुश हैं। मोबाइल और उसके साथी सबसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँग रहे है। पीछे से संगीत बज रहा है)