मानव इतिहास का स्याह सच ‘होलोकॉस्ट’

15-05-2024

मानव इतिहास का स्याह सच ‘होलोकॉस्ट’

डॉ. ऋतु शर्मा (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

पूरे विश्व में हम पश्चिमी सभ्यता को बहुत अच्छा मानते हैं। उनका अनुपालन, अनुसरण करते हैं किन्तु इस सभ्यता का मानवता को शर्मसार करने वाला एक स्याह पन्ना ‘होलोकॉस्ट’ का भी है। इसके बारे में आज की पीढ़ी बहुत कम जानती है। आज पूरे विश्व में तीसरे विश्वयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। हमें फिर से दूसरे विश्वयुद्ध जैसी त्रासदी से न गुज़रना पड़े इसलिए भी इस सच को जानना ज़रूरी है। 

दूसरे विश्वयुद्ध के समय एक विशेष नीति के तहत लगभग छह मिलियन (साठ लाख) यूरोप के यहूदियों को जहाँ रखा गया था उसे हम ‘होलोकॉस्ट’ के नाम से जानते हैं। इनमें से एक बड़ा समूह जिन्हें अपने निर्दोष जीवन की आहुति देनी पड़ी वह जगह थी—ऑस्चविट्स, सॉबिबोर, और त्रैब्लिंका। जर्मनी में नाज़ीवाद के समय यहूदी समुदाय को क्यों ढूँढ़ा गया? 

5 मई को नीदरलैंड अपना 79 स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। लेकिन उससे पहले 4 मई को शहीदी दिवस व श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी; शहीद सैनिकों के लिए और होलोकॉस्ट में अमानवीय व्यवहार द्वारा मारे गये लाखों यहूदी, समलैंगिक, अपाहिज, बीमार, निर्दोष व्यक्तियों के लिए। 

होलोकॉस्ट का अर्थ 

‘होलोकॉस्ट’ (Holokauston/Holocaust) जिसका अर्थ है पूरी तरह अग्नि को समर्पित करना। दूसरे विश्वयुद्ध के समय यह शब्द उपयोग एक विशेष समूह के लाखों लोगों को मारने के लिए किया गया। नाज़ीवाद में केवल यहूदी ही नहीं बल्कि बहुत सारे अन्य लोग जैसे कि विपक्षी राजनीतिज्ञ, संमलैगिक समूह, चर्च के प्रचारक, अपाहिज, रोमा और सिंधी समुदाय के लोग भी भारी मात्रा मेंं ‘होलोकॉस्ट’ के अत्याचार का शिकार बने। रोमा और सिंधी घुमंतु जाति के समुदाय व यहूदी को विशेष रूप से ख़त्म करने के लिए यह होलोकॉस्ट बनाया गया था। 

कैसे बने यहूदी नाज़ीवाद का निशाना? 

जब 1933 मैं हिटलर का शासन आया तब उसके साथ ही आया यहूदियों से नफ़रत का समय। 1914–1918 में प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा जिसका सीधा-सीधा कारण यहूदी समुदाय को बताया गया। 1935 में नाज़ीवाद आया तब उन्होंने यहूदियों के लिए विशेष जातिवाद नियम क़ानून निर्धारित किया। जिसका सीधा अर्थ यह था कि उनके मानवाधिकार में कटौती करना। यहूदियों को अपना वंशानुगत ब्योरा देना होता था, जैसे कौन जन्म से यहूदी है और कौन वंशानुगत। उन्हें अपना शारीरिक रूप से भी पूरा ब्योरा देना होता था क्योंकि नाज़ी लोग जानते थे कि यहूदी लोगों के बालों का रंग काला होता है। उनकी त्वचा का रंग भी जर्मन लोगों से अलग होता है। जो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यहूदी थे उनके सब मानवाधिकार छीन लिये जाते थे। उन्हें सरकारी तंत्र में काम करने की मनाही थी। उन्हें राष्ट्रीय चुनाव में मताधिकार करने का अधिकार नहीं था। यहूदियों को केवल उन्हीं के समुदाय में विवाह करना होता था दूसरे किसी समुदाय से सम्बन्ध या व्यवहार करना दंडनीय अपराध था। 

नौ और दस नवंबर 1938 की रात जिसे क्रिस्टल रात (kristallennacht) के नाम से भी जाना जाता है यही वो रात थी जिस रात यहूदियों को उनके धार्मिक स्थलों “सिनेगॉग” (Synagogen), उनके बाज़ारों को अग्नि को समर्पित कर दिया गया था क्रूरता चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई थी। इस रात का अर्थ था पूरे यहूदी समुदाय को जर्मनी से जड़ से उखाड़ फेंकना। यहूदी समुदाय के लोग ग अपनी जान बचाने के लिए यहाँ वह से भागने की कोशिश कर रहे थे। 1939 में सेंट लुईस नाम का जहाज़ जर्मनी से क्यूबा और अमेरिका के लिए रवाना हुआ। इन देशों ने डर के मारे बहुत कम लोगों को अपने यहाँ शरण दी। नीदरलैंड में भी उस समय यहूदी शरणार्थियों के लिए कड़े नियम बना दिए गए। 

यहूदी समुदायों का पूर्ण रूप से बहिष्कार 

सन्‌ 1941 में “ऑपरेशन बरबाबोसा” सोवियत यूनियन के प्रसिद्ध शहर में जब जर्मन फ़ौज पहुँची तब वहाँ चुन-चुन कर यहूदियों को निशाना बनाया गया। जिसके लिए एक ख़ास तौर के कमांडर नियुक्त किए गए जिन्हें “Einsatzgruppen” का नाम दिया गया था जिनका काम था यहूदियों को दूसरे पूर्वी यूरोप के देशों के गुप्तचरों द्वारा यहूदियों के गुप्त कामों पर नज़र रखना, वहाँ छापे मार कर उनको मारना। इस ख़ास समूह के लिए बर्लिन में काम करना मुश्किल था क्योंकि इसके लिए बहुत सारे कारतूसों की ज़रूरत थी जिसके लिए उनके पास पर्याप्त मात्रा में धन उपलब्ध नहीं था। दूसरी तरफ़ वह डर गये थे कि कहीं सैनिक इतने लोगों का लहू देख कर अपना मन न बदल लें। इन सब लंबे प्रयोग से बचने के लिए उनको एक ही आसान रास्ता दिखाई दिया वह था—ज़हरीली गैस द्वारा यहूदियों को ख़त्म करना। 

उत्तरी यूरोप में ख़ून की इस होली के बाद हिटलर ने भी उनका साथ देने के लिए यहूदियों को मारना शुरू कर दिया। 1942 में बर्लिन की (Wannseeconferentie) कॉन्फ़्रेंस मेंं Endlösung यहूदियों की निर्मम हत्याओं के लिए एक मज़बूत प्लान बनाने का काम जर्मनी के ऑफ़िसर राइनहार्ड हाइड्रिच (Reinhard Heydrich’ को सौंपा गया। कॉन्फ़्रेंस के दो घंटे बाद ही इस प्लान को रूप दिया गया और सारे यहूदियों के लिए गैस चेंबर तैयार किए गए। जर्मनी और उसके आस-पास के सभी देशों में यहूदियों को अपने कपड़ों पर सितारे का निशान लगाने को कहा गया ताकि उनकी पहचान करने में आसानी हो सके। जर्मनी सेना ने गली-गली घूम कर यहूदियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। नीदरलैंड के डिस्ट्रिक्ट ड्रेंथे (Drenthe) के वेस्टरबोर्क (Westerbork) से एक लाख यहूदी और 245 सिंधी और रोमा समुदाय के लोगों को ट्रेनों में भर भर कर जर्मनी, पोलैंड, चैक रिपब्लिक ले जाया गया। इसी समय ‘अना फ़्रांक’ को ऑस्चविट्ज़ (Auschwitz) कैम्प में ले जाया गया था। जहाँ दूसरे कैंप Bergen-Belsen में उसकी मृत्यु हो गई थी। 

इस घटना के लगभग 75 वर्षों बाद नीदरलैंड में यहूदियों के लिए शहीद स्मारक बनाया गया। 

यह मानव इतिहास में ऐसा स्याह पन्ना था जिसे शायद ही कभी कोई पढ़ना चाहेगा। 

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