चाँदी का सिक्का

01-08-2023

चाँदी का सिक्का

डॉ. ऋतु शर्मा (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मूल लोक-कथा: सिल्वर खिलडन (डच)

अनुवादक: ऋतु शर्मा

(नीदरलैंड की लोक कथाओं के सौजन्य से)

 

बहुत समय पहले की बात है। तब नीदरलैंड में यूरो नहीं खिलडन (Ghulden) नाम की मुद्रा हुआ करती थी। टकसाल से अभी तैयार सरकारी मोहर लगा, एक नया चाँदी का एकदम सफ़ेद चमचमाता हुआ सिक्का अभी अभी बाज़ार में आया। उसे बाज़ार में आने की बहुत ख़ुशी थी, वह सबको गा-गा कर बता रहा, था कि वह अब बाज़ार में आ गया है और इस तरह वह सारी दुनिया घूम सकता है। ऐसा हुआ भी।

जब वह बाज़ार में आया तो सबसे पहले बच्चों के नर्म हाथों से होता हुआ वह कंजूस के कड़े हाथों और बूढ़े लोगों के चिपचिपे हाथों तक में घूमा। किसी के पास वह कुछ महीने रुका, किसी के पास कुछ सप्ताह और किसी ने उसे तुरंत ख़र्च कर दिया। इस तरह लगभग एक साल तक चाँदी का सिक्का अपने ही देश में एक हाथ से दूसरे हाथ, यहाँ से वहाँ घूमता रहा।

इसी तरह वह एक दिन एक ऐसे व्यक्ति के पास पहुँचा जो किसी काम से विदेश जा रहा था। उसने चाँदी के सिक्के को अपने बटुए में रखा था। जब वह विदेश पहुँचा तो चाँदी का सिक्का भी उस व्यक्ति के साथ विदेश पहुँच गया। क्योंकि वह व्यक्ति विदेश जाते समय उसे विदेशी मुद्रा में बदलना भूल गया था। चाँदी का सिक्का उस व्यक्ति के बटुए में ही रह गया था। इस बात से वह व्यक्ति ख़ुद भी अनजान था कि उसके देश का चाँदी का सिक्का उसकी जेब में है। एक दिन जब वह विदेश में था और उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो, उसके हाथों कीं उँगलियों से कुछ टकराया। उसने बाहर निकाल कर देखा तो वह उसके देश का चाँदी का सिक्का था। उसने हँसते चाँदी के सिक्के को देखा और कहा, “अहा . . . मेरे देश का अपना सिक्का? चलो मैं इसे अपने बटनों रख लेता हूँ।” ऐसा कह कर उस व्यक्ति ने चाँदी के सिक्के को अपने बटुए में रख लिया।

चाँदी का सिक्का भी बहुत ख़ुश हुआ अब वह उस व्यक्ति के साथ रह दुनियाँ घूम सकता था। बटुए में नीदरलैंड के चाँदी के सिक्के के अतिरिक्त दूसरे देशों के भी सिक्के मौजूद थे। पर वह सिक्के थोड़े समय के लिए ही उस बटुए में रह पाते थे। वह जितनी जल्दी आते उतनी जल्दी चले भी जाते थे। चाँदी के सिक्का अभी भी उस व्यक्ति के बटुए में अपना स्थान बनाए हुए था। इस बात से वह अपने आप को बहुत सम्मानित महसूस कर रहा था। उसका बड़ी-सी दुनियाँ में आने का सपना लगभग पूरा होने जा रहा था। पर उसे अभी तक यह नहीं पता था कि वह कहाँ और किस देश में है। बटुए के अन्य सिक्कों से उसे यह ज़रूर पता चला कि वह फ़्रांस या इटली के सिक्के हैं। कुछ हफ़्तों तक उस व्यक्ति के बटुए में रहने के बाद चाँदी के सिक्के को लगा कि शायद वह कभी इस बटुए से बाहर नहीं आ सकेगा। उसने इसी को अपनी नियति मान लिया था। किन्तु बाहर की दुनियाँ को देखने की उत्सुकता उसके मन में अभी भी बनी हुई थी।

एक दिन चाँदी के सिक्के ने देखा उस व्यक्ति ने अपने बटुए का बटन ठीक से बंद नहीं किया है। बस फिर क्या था, उसने मौक़ा देखा और वह बटुए से निकल कर जेब में आ गया। उसे लगा बस अब बाहर की दुनियाँ को देखने का समय गया है। हालाँकि चाँदी के सिक्के को ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए था। कहते हैं न कभी कभी बिना सोचे समझे कोई काम किया जाए तो बाद में वह काम सज़ा के समान हो जाता है।

ये बात आपको आगे चलकर चाँदी के सिक्के से पता लगेगी।

शाम को जब वह व्यक्ति अपने होटल के कमरे में लौटा तो उसने अपनी पैंट उतार कर हैंगर पर टाँग दी। चाँदी का सिक्का पैंट की जेब से चुपके से फिसलता हुआ बिना आवाज़ किए कालीन पर गिर गया। अगले दिन वह व्यक्ति अपने कपड़े पहन बाहर चला गया। चाँदी का सिक्का वहीं पड़ा रहा। जब बाद में होटल का सफ़ाई कर्मचारी, कमरे की सफ़ाई के लिए वहाँ आया तो उसको चाँदी का सिक्का मिला। उसने यह बिना जाने की वह किस देश का है अपनी जेब में रख लिया।

जब होटल का सफ़ाई कर्मचारी कुछ ख़रीदने बाहर गाया तो उसने उस देश के दो सिक्कों के साथ उस चाँदी के सिक्के को भी दुकानदार को दे दिया। चाँदी का सिक्का मन ही मन बहुत ख़ुश हो रहा था, उसे लगा चलो अब उसका दुनियाँ घूमने का सपना पूरा होगा। जैसे ही चाँदी का सिक्का दुकानदार के हाथों में गया, चाँदी के सिक्के के कानों में एक भारी आवाज़ सुनाई दी।

“आप इस सिक्के से कुछ ख़रीदना चाहते हैं? यह यहाँ नहीं चल सकता, यह नक़ली है।”

और यहीं से शुरू होती है असली कहानी, जो उसने हमें सुनाई . . .।

“नक़ली, . . . यह यहाँ नहीं चल सकता। जब ये शब्द मेरे कानों में पड़े तो मैं एकदम अचंभित रह गया।” ऐसा कहते हुए चाँदी के सिक्के ने आगे बताना शुरू किया।

“जब मैं नीदरलैंड की टकसाल से बाहर आया तो मुझे ये ही पता था कि मैं एकदम खरी चाँदी का बना नया सिक्का हूँ। इस देश के लोगों के लिए तो मेरा कोई मोल ही नहीं था। इनके लिए मैं एक नक़ली, खोटा सिक्का था। जिसे कोई लेना ही नहीं चाहता था। मुझे बाज़ार में चलाने के लिए लोगों को या तो अँधेरे का इंतज़ार करना होता था या फिर किसी को धोखा देने का। मैं लोगों की हथेलियों में दबा रहता। जब वह मुझे बाज़ार में चलाने की कोशिश करते और पकड़े जाते तो वह जी भर कर मुझे कोसते या नक़ली, खोटा सिक्का कह कर गाली देते। उनके लिए मुझ पर लगी मोहर का भी कोई महत्त्व नहीं था। यह सब देख-सुन मेरी आत्मा रो रही थी। मैं ख़ुद को उस दिन के लिए कोसने लगा जिस दिन मैं अपने देश के व्यक्ति के बटुए से बाहर की दुनिया देखने के लालच से निकला था। अब मुझे समझ आ रहा था कि बिना सोचे समझे अपनी मनमानी करना कितना भारी पड़ सकता है।

“मैं अपनी नज़रों में बिलकुल निर्दोष था। एक दिन मैं दो धोखेबाज़ लोगों के हाथों में था। उन्होंने मुझे बाज़ार में चलाने की कोशिश की और जब उन्हें भी वही सब सुनना पड़ा जो मैं अब तक सुनता आ रहा था। ‘यह नक़ली सिक्का है, यह यहाँ नहीं चल सकता।’ इतना सुनते ही उन दोनों में से एक ने मुझे अपनी उँगलियों में भींचते हुए मुझे ऐसे देखा जैसे मैं कोई शातिर बदमाश या धोखेबाज़ हूँ। वह जल्द से जल्द मन किसी को दे मुझसे छुटकारा पाना चाहते थे। वह दोनों धोखेबाज़ मन ही मन मुझसे छुटकारा पाने की तरकीब सोचने लगे। उन्होंने मुझे उनके घर काम करने वाली बुढ़िया को उसकी एक दिन की कमाई के रूप में उस बुझी औरत को दे दिया। बेचारी बूढ़ी अम्मा ने जब घर पहुँच कर मुझे ध्यान से देखा तो उन्हें भी दूसरे लोगों की तरह पता लगा की मैं एक नक़ली, खोटा सिक्का हूँ। अब वह भी मुझे जल्द से जल्द अपने पास से दूर करने का उपाय सोचने लगी। वह यह बात अच्छी तरह से जान गई थी कि दिन की रोशनी में कोई मुझे नहीं लेगा। बिना किसी को धोखा दिए वह मुझसे छुटकारा नहीं पा सकती। हालाँकि उसे यह सब करना अच्छा नहीं लग रहा था। पर उसकी भी मजबूरी थी, उसके पास अधिक पैसे भी नहीं थे। उसने सोचा शाम को मैं इसे बेकरी वाले को दे, ब्रेड ले आऊगीं। क्योंकि बेकरी वाले के पास हमेशा बहुत भीड़ रहती है, और उसके पास इतना समय कहाँ होता है जो वह मुझे ठीक से जाँचे। बस यही सोच वह मुझे ले बेकरी वाले की दुकान पर पहुँची। बूढ़ी अम्मा को मुझे चलाने के लिए किसी को धोखा देने पर मजबूर होते देख, मेरा मन बहुत रो रहा था। मैं अपने आप को दोषी समझ रहा था और सोच रहा था कि मैं कितना नाकारा हूँ मेरे कारण किया को अपने बुढ़ापे में मेरे कारण किसी दूसरे को धोखा देना पड़ रहा है। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं ऐसा करने के लिए बूढ़ी अम्मा कि अंतरात्मा पर ज़ोर डाल रहा हूँ।

“ख़ैर बूढ़ी अम्मा मुझे लेकर बेकरी वाले के पास पहुँची। बेकरी वाला बहुत समझदार था, उसे असली और नक़ली मेहनत में अच्छे से फ़र्क़ करना आता था। उसने मुझे बहुत ध्यान से देखा और मुझे फिर से वापस बूढ़ी अम्मा को यह कहते हुए वापस कर दिया, ‘अम्मा यह सिक्का बेकार है। आप वापस ले जाओ इस सिक्के से आप यहाँ कुछ नहीं ख़रीद सकतीं।’ बेचारी बूढ़ी अम्मा मेरी वजह से बेकरी की दुकान से बिना कुछ लिये ख़ाली हाथ मेरे साथ घर वापस आ गई। घर आ कर बूढ़ी अम्मा ने लैंप की रोशनी में मुझे बहुत ध्यान से उलट पलट कर देखा। शायद उसे मुझ पर दया आ गई थी। वह मुझे देखते हुए कह रही थी, ‘बस अब बहुत हुआ लोगों को तुम्हारा नक़ली और खोटा सिक्का कहना। मैं नहीं चाहती कि तुम्हें चलाने के लिए मुझे फिर से किसी को धोखा देना पड़े। मैं तुम्हारे अंदर एक छेद कर तुम्हें एक रंगीन धागे में डाल एक लॉकेट बना देती हूँ। तुम्हें भी पता लगना चाहिए कि तुम एक खोटे सिक्के हो, पर हो सकता है तुम एक भाग्यशाली सिक्के हो?’ मुझे नहीं पता बूढ़ी अम्मा के मन में यह विचार कहाँ से आया? फिर उसने हथौड़े और कील से मेरे बीचों-बीच एक छेद कर एक सुंदर से रेशम के धागे में डाल अपने पड़ोस में रहने वाली छोटी बच्ची को पहना दिया। वैसे तो मुझे मेरे बीचों-बीच बूढ़ी अम्मा का हथौड़ी से यूँ छेद करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था, पर यह छेद अच्छे काम के लिए किया गया था, इसलिए मैंने दर्द सह लिया। अब मुझे इस बात की तसल्ली हो गई थी कि कम से कम अब मैं और लोगों के हाथों में जाने और उनकी गालियाँ खाने से तो बच जाऊँगा। पड़ोस की छोटी बच्ची ने मुझे अपने गले में बड़े गर्व के साथ ऐसे पहना जैसे किसी ने उसे इनाम का मैडल पहनाया गया हो। मुझे उसने झट से अपनी नर्म हथेलियों में भर कर अपने गुलाबी होंठों से लगा चूम लिया।

“रात को भी वह छोटी बच्ची मुझे अपने सीने से लगा कर सोई। सच कहूँ तो उस दिन मुझे भी कई दिनों बाद उस छोटी बच्ची के साथ चैन की नींद आई। अगली सुबह उस बच्ची की माँ ने मुझे बहुत ध्यान से उलट-पलट कर देखा। उसे लगा अगर मैं सौभाग्यशाली सिक्का हूँ तो मुझे साफ़ करके देखना चाहिए। इसलिए उसने मुझे बच्ची के गले से उतारा, मेरा नर्म रेशम का धागा कैंची से काटा और मुझे सिरके के पानी में डाल अच्छी तरह से साफ़ किया। उसने मेरा छेद भी भर, एक नर्म कपड़े से मुझे साफ़ कर एकदम नया जैसा बना दिया।

“उसे लॉटरी खेलने की आदत थी। उसने मुझे अपने बटुए में रखा और बाज़ार लॉटरी का टिकट लेने के लिए चली गई। मुझे बहुत डर लग रहा था, मुझे लग रहा था कि अब मुझे फिर से लोगों से वही सब बातें सुनने को मिलेंगी। मुझे कोई लेगा नहीं पर सब मेरा अपमान ज़रूर करेंगे। इस बार मैं सही नहीं था, लॉटरी ख़रीदने वाले के पास लोगों की इतनी भीड़ थी कि उसके पास पैसे गिनने का समय ही नहीं था। उसने मुझे बिना देखे ही दूसरे पैसों के साथ ग़ल्ले में फेंक दिया। मुझे यह तो पता नहीं था कि यह पैसे इनाम में दिए जाएँगे या कहीं और दिए जाएँगे। पता था तो बस इतना ही कि जब अगली सुबह ये सारे सिक्के गिने जाएँगे तो मुझे फिर से नक़ली, खोटा सिक्का कह कर निकाल दिया जाएगा। मेरे लिए यह स्थिति बहुत ही घुटन भरी थी। मैं किसी को बता नहीं सकता था कि मैं खोटा सिक्का नहीं हूँ। एक हाथ से दूसरे हाथ, एक घर से दूसरे घर जाने वाली स्थिति और लोगों का मुझे ग़ुस्से से देखना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था। मैं बहुत दुखी हो गया था। फिर एक दिन एक अजनबी वहाँ आया। उस अजनबी को धोखा दे कर मुझे उस अजनबी को दे दिया गया।

“वह बेचारा इस देश में नया था, इसलिए बाहरी सिक्कों के साथ मुझे पहचान नहीं पाया। एक दिन जब उसने मुझे एक दुकानदार को देना चाहा, तो उसे भी वही सुनने को मिला जो उस से पहले और भी कई लोगों को मिला था। ‘मुझे बेवक़ूफ़ मत बनाओ, तुमसे पहले भी कई बार लोग इस खोटे सिक्के को लेकर मेरे पास आ चुके हैं। यह नक़ली सिक्का है। यह यहाँ नहीं चलेगा।’ मैं शर्म के मारे पानी-पानी हो गया था। इतना सुनते ही अजनबी ने मुझे ध्यान से देखा, अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान की एक लहर आ गई। मुझे देख कर इस देश में कोई पहले इतना ख़ुश हुआ हो, मुझे याद नहीं। इसलिए मुझे उस अजनबी को यूँ ख़ुश देख बहुत आश्चर्य हुआ। उस अजनबी ने उस दुकानदार को बताया कि मैं नक़ली सिक्का नहीं, उसके देश नीदरलैंड का खिलडन हूँ। मुझ पर नीदरलैंड की टकसाल की मोहर लगी है, और मैं असली चाँदी का सिक्का हूँ। यह सुनते ही मेरी आँखों से ख़ुशी के आँसू बह निकले। मुझे उस अजनबी से अपने बारे में सच्चाई सुन कर बहुत ख़ुशी हो रही थी। आख़िरकार पहली बार मुझे कोई ऐसा मिला जिसने मेरी इज़्ज़त की, उसने मुझे बड़े प्यार से एक सफ़ेद काग़ज़ में लपेटा ताकि मैं दूसरे सिक्कों के साथ न मिल जाऊँ। वह मुझे अपने साथ अपने घर ले गया। जब उसके घर कोई विशेष मौक़ा या मेहमान आते थे तब वह उन सबसे मुझे मिलवाता था। मुझे भी यह बहुत सम्माजनक लगता था, बिना एक शब्द बोले सबकी नज़रों में अपने लिए प्यार देखना।

“अब मैं अपने घर वापस आ गया था। मेरी सारी मुश्किलें ख़त्म हो गई थीं। अब मैं फिर से असली चाँदी का नीदरलैंड की टकसाल की मोहर लगा सिक्का था। जिन लोगों ने मुझे नक़ली समझ मेरे बीचों-बीच छेद बना दिया था, अब उसका भी मुझे दुख नहीं था। अगर आप इस यह सोच रहे हैं कि यदि आप सच्चे और सही है तो अंत में सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो ऐसा मत सोचिए, क्योंकि हमेशा ऐसा नहीं होता।

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