नीदरलैंड और महिला अधिकार
डॉ. ऋतु शर्मा
आज का समय आधुनिकीकरण का समय है। आज नारी हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। स्त्रियों को समानता का अधिकार प्राप्त है। नीदरलैंड पूरे विश्व के लिए समानता के अधिकार के लिए जाना जाता है। जहाँ सभी वर्गों, लिंग व जाति के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता। ऐसा हम जानते हैं क्योंकि जब कभी भी यूरोप या यूरोप के किसी भी देश की बात होती है तो हमारे सामने एक भव्य चित्र उभर कर आता है। जिसमें सब कुछ बहुत सुंदर व्यवस्थित दिखाई देता है। नीदरलैंड में औरतों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं—ऐसा हमें लगता है पर ऐसा है नहीं। इस लेख में हम नीदरलैंड में महिलाओं की स्थिति के कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे।
1. प्रथम स्त्री विमर्श आन्दोलन (emancipatie) के समय 1850-1940 को समय नीदरलैंड की महिलाओं को शिक्षा, वोट डालने का अधिकार व घर से बाहर काम करने का अधिकार प्राप्त हुआ था। फिर भी उस समय बहुत कम लड़कियाँ और महिलाएँ शिक्षा के लिए स्कूल गई थीं। पुरुषों की राजनीति के चलते काम पर सिर्फ़ कुँवारी लड़कियों को ही रखा जाता था।
2. सन् 1950 तक विवाहित महिलाओं ने घर से बाहर काम नहीं किया। यदि वह बाहर जाकर काम करती थीं को यह माना जाता था कि वह बहुत ग़रीब हैं और यह उनके सामाजिक जीवन में बहुत बढ़ा अवरोध पैदा करता था।
3. 1956 से नियमों में कुछ बदलाव लाने के बाद से महिलाओं को अपना बैंक खाता खोलने का अवसर प्राप्त हुआ। किन्तु फिर भी पुरुष ही उस खाते का हिसाब-किताब रखता था। घर की औरतों के हिस्से अपनी कमाई का बहुत कम हिस्सा आता था।
4. समानता के अधिकार की आवाज़ बुलंद होने से 1960 में महिलाओं ने बड़ी संख्या में घर के बाहर काम करना आरंभ कर दिया। बाहर काम करना हर महिला का सपना बन गया किन्तु यहाँ भी उनके परिवार के प्रति कर्त्तव्यों ने उन्हें पुरुषों से पीछे छोड़ दिया।
5. गर्भ निरोधक गोलियों, क्रैश, पार्ट टाइम काम के आने से “महिलाओं को सिर्फ़ एक गृहिणी बन कर रहना चाहिए” वाक्य धुँधला दिखाई देने लगा।
6. महिलाओं को गृहणी बन कर रहना चाहिए—आज भी पुरुषों की सोच है। पुराने नियम क़ानून में ज़्यादा बदलाव न होने के कारण आज भी महिलाओं को आर्थिक सहायता के लिए पुरुषों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। जिसके लिए नीदरलैंड में बहुत सी संस्थाएँ महिला अधिकारों को लेकर आन्दोलनरत हैं। नीदरलैंड यूरोप का एक आधुनिक देश है पर फिर भी पूर्ण रूप से आधुनिक नहीं है।
एक महिला होकर आत्मनिर्भर बन कर अपने पैरों पर खड़े होना नीदरलैंड में बहुत मुश्किल है। 1950 से लेकर अब तक नीदरलैंड में बहुत परिवर्तन आया है फिर भी आधे से अधिक नीदरलैंड की महिलाएँ अपने कार्य से इतना पैसा नहीं कमा सकतीं जिससे वह आत्मनिर्भर हो कर जीवन यापन कर सकें। महिलाएँ रसोई से निकल कर बाहर आ गई हैं पर बाहर आ कर वह कितनी आत्मनिर्भर बनें, यह देखना अभी बाक़ी है।
समानता का अधिकार Emancipatie आंदोलन
एलेट्टा याकॉब्स नाम की लड़की जिसने समाज से लड़कर उच्च शिक्षा प्राप्त की और नीदरलैंड की पहली महिला डॉक्टर बनी। 17वीं शताब्दी में जन्मीं एलेट्टा को अपने जीवनकाल में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। वह एक साधारण परिवार से आई थी और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह एक समाजसेवी, डॉक्टर और नेता बनी। उन्होंने नारी आंदोलन के लिए बहुत सराहनीय कार्य किए। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए एक संगठन तैयार किया जिसका नाम “वुमेन्स इम्प्रूवमेंट सोसाइटी” था। इस संगठन के तहत उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा और रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिये एक मज़बूत व बुलंद आवाज़ उठाई।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी नीदरलैंड में महिलाओं की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई थी। महिलाएँ बाहर काम कर रही थीं किन्तु विवाहित महिलाओं को ही काम के अवसर प्राप्त थे। जिसमें भी वह अपने पुरुष सहयोगियों से कम मेहनताना पाती थीं। पूरा समाजिक वातावरण इस प्रकार बना हुआ था जिसमें पुरुष बाहर काम करके पैसे कमाता था और औरतों को घर की ज़िम्मेदारी सँभालनी होती थी। सरकार की नीति के अनुसार यदि कोई पुरुष बीमार होता था तो उसे उसकी तनख़्वाह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा उसके जीवित रहने तक मिलता था। महिलाएँ इस नीति का फ़ायदा तभी उठा सकती थीं यदि वह विवाहित हों। इस प्रकार उनकी 90% सामाजिक व आर्थिक स्थिति पुरुषों पर ही निर्भर करती थी। इसलिए बीस वर्ष की होते-होते लड़कियों का विवाह कर दिया जाता था क्योंकि यही एक तरीक़ा था उनके भविष्य को सुरक्षित करने का। उस समय के नियम क़ानून कुछ इस तरह से बने थे जिसमें महिलाओं व बच्चों को आर्थिक सहायता के लिए परिवार के पुरुषों पर ही निर्भर रहना पड़ता था। जैसे महिलाओं को बैंक में बिना पति के, अपना बैंक खाता खोलने का अधिकार नहीं था। उसकी कमाई पर पहला हक़ उसके पति का होता था। उसे अपनी सारी कमाई अपने पति को देनी होती थी और वही इस बात का निर्णय लेता था कि किसको कितना पैसा दिया जाए।
1956 में संसद की सदस्या “कोरी तेनदलो” ने इस नियम के विरुद्ध संसद में आवाज़ उठाई। जिसका परिणाम 1957 में देखने को मिला। संसद में महिलाओं को उनकी तनख़्वाह और बैंक में अपने नाम से खाता खोलने का प्रस्ताव पास हो गया। किन्तु वास्तविकता में समाज में इस क़ानून को लागू करने में कई वर्ष लगे। बहुत-सी महिलाएँ अपनी पहली संतान होने तक बाहर जाकर काम करती और बाद में घर में बैठ जाती। क्योंकि अब विवाहित और बच्चे वाली औरत को यदि घर से बाहर जा कर काम करना पड़़े तो यह पुरुषों के लिए समाज में बहुत अपमानजनक माना जाता था। संसद जे नियम के कारण महिलाओं को बाहर काम करने का अवसर तो प्राप्त हो गया था परन्तु अपनी कमाई का हिसाब-किताब रखने में उन्हें अभी भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
1969 में ‘कम्युनिस्ट पार्टी नीदरलैंड’ ने महिलाओं के समानता के अधिकार पर आवाज़ उठाई और तब जाकर उनको उनके पुरुष सहयोगियों के समान तनख़्वाह मिली। इस तरह से महिलाएँ घर के बाहर काम तो करने लगीं पर अब उनके सामने समस्या थी कि वह अपने बच्चों व घर का ख़याल कैसे रखें? साठ के दशक के अंत में (MVM) महिलाओं व पुरुषों के संगठन के साथ डोली मीना ने इस समस्या के लिए आवाज़ उठाई और इस समस्या का समाधान खोज निकाला। क्योंकि वह चाहती थी कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएँ आत्मनिर्भर बने। उन्होंने बच्चों के लिए क्रैश खुलवाया। इस नियम से महिलाओं को स्वतंत्र जीवन में सहायता मिली। किन्तु अभी भी महिलाओं के शरीर पर पुरुष का ही अधिकार था। ईसाई समुदाय के लोग गर्भ गिराने को महापाप मानते थे। कई बार महिलाएँ बहुत कमज़ोर होती थीं इसलिए बच्चे को जन्म देते समय कई बार महिलाएँ मृत्यु का ग्रास बन जाती थीं। महिलाएँ हर वर्ष एक बच्चा पैदा करने और घर में रह कर उसका लालन पालन करने को बाध्य थीं। डोली मीना ने इसके विरोध में भी आवाज़ उठाई उसने महिलाओं को गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग करने की सहमति संसद से प्राप्त कर ली गई। इससे महिलाओं को बहुत सहायता मिली। वह अब आत्म सम्मान के साथ समाज में रहने लगीं। सत्तर के दशक में महिलाओं ने बाहर की दुनिया में अपनी पहचान बना ली। महिलाएँ अब फ़ैक्टरी से निकल कर कार्यालयों, अस्पतालों, शिक्षण, तक पहुँच गईं। 1975 में यह क़ानून बनाया गया कि अब काम देने वाले को महिला कर्मचारी को भी उतनी तनख़्वाह देनी होगी जितनी वह पुरुष कर्मचारी को देता है। 1986 में जाकर यूरोप के अन्य देशों के नियम के अनुसार नीदरलैंड में भी महिलाओं को भी वृद्धावस्था पेंशन और काम बंद होने पर पुरुषों की भाँति सत्तर प्रतिशत तनख़्वाह घर बैठे दिए जाने क़ानून पास किया गया। इसी समय बच्चों को क्रैश में रखने पर आने वाले ख़र्च का कुछ हिस्सा सरकार द्वारा भरे जाने का नियम भी बना।
इन सभी आन्दोलनों, नियम-क़ानून बनने के बाद भी आज तक नीदरलैंड में महिलाओं को पूर्णतः समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है। आज भी महिलाओं को अपने पुरुष सहयोगियों से कम वेतन मिलता है। आज भी उनके लिए काम मिलना आसान नहीं है। यदि किसी महिला के पास बच्चे हैं तो उसके लिए काम मिलना और भी मुश्किल हो जाता है। बच्चे के जन्म के समय केवल दो माह की तनख़्वाह सहित छुट्टी लेने का प्रावधान है। पचास वर्ष के ऊपर वाली महिलाओं के लिए उनकी योग्यता के अनुसार काम मिलने की सम्भावना बहुत कम होती हैं। कार्यस्थल में महिलाओं के साथ उनके उच्च अधिकारियों व सहयोगियों द्वारा दुर्व्यवहार आम बात है। यहाँ तक की टीवी व मिडीया में भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। आज नीदरलैंड में महिलाएँ फ़ौज में काम करती हैं किन्तु उन्हें पुरुषों की तरह कंमाडर नहीं बनाया जाता। उन्हें युद्ध पर नहीं भेजा जाता। ज़्यादातर महिलाएँ फ़ौज में रसोई में या चिकित्सा विभाग में या फिर लिखा-पढ़ी का काम ही करती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में भी महिलाओं को कम अवसर प्राप्त होते हैं। आज भी चिकित्सा के क्षेत्र में महिला डॉक्टर से ज़्यादा पुरुष डॉक्टर हैं। संसद में महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों का वर्चस्व है। पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को प्रोमोशन के बहुत कम अवसर मिलते हैं। बहुत कम महिलाओं को उच्च पद प्राप्त हैं। तकनीकी और आई टी सेक्टर में भी महिलाओं की कमी है।
आज की युवा पीढ़ी व सरकार इन नियमों को वास्तविक रूप से लागू करने की योजना बना रही है, इन नियमों को बदलने की कोशिश कर रही है। कहीं-कहीं बदलाव आये भी हैं। अब महिलाएँ अपना मन चाहा वर तलाश सकती हैं। ज़रूर पड़़ने पर अपने निर्णय ले सकती हैं। किन्तु फिर भी अभी समय लगेगा नीदरलैंड में महिलाओं को पूर्ण समानता पाने के लिए। यह हमारे लिए बहुत ही सम्मान की बात है जहाँ भारत यूरोप के लिए तीसरा और पिछड़ा हुआ देश माना जाता है वहाँ की महिलाओं, चाहे वह किसी भी धर्म सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखती हों, को समानता का अधिकार प्राप्त है।
डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे
सदस्या परामर्श समिति
नगरपालिका आसन नीदरलैंड
RituS0902@gmail.com