प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति से बातचीत

01-12-2022

प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति से बातचीत

डॉ. संदीप अवस्थी (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

प्रो. सोमा बंधोपाध्याय
सम्प्रति: शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय (625 कॉलेज अधीनस्थ कार्यभार वर्तमान समय में), अतिरिक्त दायित्व भार डायमंड हार्बड महिला विश्वविद्यालय (देश के पूर्वी भारत) कोलकाता 
प्रकाशन:

  • 35 किताबें प्रकाशित, 15 अनुवाद किताबें प्रकाशित, 140 आलेख प्रकाशित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में, 250 से अधिक व्याख्यान 

सम्मान:

  • साहित्य अकादमी से साहित्य अनुवाद के लिए सम्मानित 

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 2013), 

  • प्रयाग साहित्य सम्मेलन सम्मान (वर्ष 2013), 

  • मीरा स्मृति सम्मान (वर्ष 2014), 

  • राजभाषा गौरव सम्मान (वर्ष 2018) 

  • अन्य सम्मान साथ ही देवी अवार्ड (18 सितंबर 2022) से सम्मानित 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काव्य संग्रह का संपादन कर जन-जन तक पहुँचाने वाली और भारतीय संस्कृति परिवार को भी समय देने वाली बहु आयामी व्यक्तित्व की धनी और उतनी ही विनम्र एक ऐसा नाम जो ख़ामोशी से कार्य करती है कोई शिकायत नाराज़गी नहीं रखती। चुनौतियाँ बहुत आती है पर उनसे स्वयं की मेधा, धैर्य और माँ शारदा माँ काली के आशीर्वाद से पार पा जाती है कभी नफा नुक़्सान देख कार्य लेखन नहीं करती बल्कि सही शुभ और सर्वजन हिताय के लिए कार्य करती हैं ऐसे व्यक्तित्व से यह मुलाक़ात। आशा है सुद्धिजनों को अच्छी बौद्धिक और कुछ जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण साक्षात्कार . . . .
जाने-माने आलोचक डॉक्टर संदीप अवस्थी और युवा शोधार्थी अनिता ठाकुर उनसे बातचीत कर रहे हैं— 

 

डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

मैम, सर्वप्रथम साक्षात्कार में आपका हार्दिक अभिनंदन और देवी अवार्ड से सम्मानित होने के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

धन्यवाद, अनिता। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

मैम, आप इतना बड़ा विश्वविद्यालय के कार्यभार को सँभालना, क्रमबद्ध लेखन सृजन कार्य और साथ ही पारिवारिक दायित्व भार तीनों कार्य बड़ी ही कुशलता पूर्वक कर रही है—तीनों ही कार्य में सामंजस्य स्थापित करते हुए आप यह सब कैसे कर लेती हैं? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

(मुस्कुराते हुए . . .) पहले मैं धरती माँ की बात करती हूँ। यह जो मिट्टी है, यह जो मेरी माँ है। कितना धैर्य है इसमें! इसलिए इसे धरती कहा गया है। सबका वह बोझ धारण करती है। हम लोग को वह कितना खाना देती है, पानी देती है, आश्रय देती है, फल फूल सब कुछ देती है। लेकिन हम लोग उस पर इतना अत्याचार करते हैं और वह सहन करती है। इसलिए हम उसे धरती माँ कहते हैं। और जो स्त्री है वह नारी है और उसका सबसे ज़्यादा सम्मानीय रूप है वह है माँ। जब वह बेटी होती है किसी की पत्नी बनती है फिर वह माँ बनती है और वह तमाम घर–बाहर को सँभालती है तो वह उसमें संतुलन रखती है। वह बैलेंस धरती माता से सीखा है। धरती भी बहुत अच्छा बैलेंस रखती है। जब उस पर कभी ज़्यादा अत्याचार हो तो फिर वह अपना रौद्र रूप भी दिखाती है, वरना वह इतनी शांत, सुंदर। उसकी प्रकृति है चारों ओर हरा भरा ख़ुशहाली। लेकिन वही धरती माँ जब अत्याचार बहुत ज़्यादा हो जाता है जैसे—प्रदूषण, जब ज़्यादा हो जाता है तब उसका रूप देखने लायक़ होता है। बाढ़, भूकंप, सुनामी, तूफ़ान और ना जाने क्या-क्या (और हँसते हुए . . .) इस तरह माँ भी है वह धैर्य की शीला होती है घर–बाहर सबको वह सामंजस्य बनाए रखती है। मैंने भी उसी से सीखा है। मैंने अपनी माँ को देखा है। वह किस प्रकार से करती थी। वह इतने सारे रोल प्ले एक स्त्री ही कर सकती है। एक तरफ़ वह घर में सवेरे उठकर सबको निर्देश देती है क्या करना है उसके बाद खाना बनाती है, उसके बाद वह काम पर भी जाती है और वह काम पर जाते हुए भी उसको याद रहता है कि उसका बच्चा स्कूल से आएगा और वह उसे लेने भी जाती है और घर आकर फिर से वह उसी भूमिका में आ जाती है। यह सब कुछ एक ही स्त्री ही कर सकती है। इसी तरह मैं भी कर लेती हूँ। मैं समझती हूँ कि हमारी प्रकृतिदत्त स्त्रियों में गुण है वह बैलेंस करके चलना जानती है। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

हम साहित्य के क्षेत्र में एक अजीब सी शून्यता या यूँ कहें कि फ़ैशनेबल लेखन देख रहे हैं इसमें ज़मीन से जुड़े मुद्दे ग़ायब हैं और वर्तमान समय में अधिकांश फ़ैशनेबल लिख रहे हैं वह डिमांड में या पत्र और समाचार पत्रों के अनुकूल लिख रहे हैं जिससे वह छप सके। सवाल यह उठता है कि इसे हम साहित्य का विघटन या साहित्यकार का विघटन नहीं कहेंगे और साथ ही इसके ज़िम्मेदार कारक कौन-कौन से हैं? 

प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

फ़ैशनेबल राइटिंग को देखते हुए सोशल मीडिया और तमाम सांस्कृतिक जो दूसरे पहलू हैं जैसे सिनेमा, इस समय की सोशल मीडिया और लोगों को क्या पसंद है इस पर लोग लिख रहे हैं। और मैं आपको बता दूँ अगर इसमें वह मूल्य है जो हमेशा से समाज को आगे बढ़ाता है, जो एक व्यक्ति को दिशा देता है—एक साहित्य का यही काम होता है। साहित्य तो समाज का दर्पण होता है। साहित्य केवल मनोरंजन की चीज़ नहीं है। साहित्य मूल्य बोध सिखाता है और समय की जो आप डिमांड की बात कर रही है-जो कुछ विषय आ रही है, वह अच्छे विषय हैं पर कुछ अच्छा लिखा जा रहा है, सारा कुछ ट्रास लिखा जा रहा है-ऐसा कुछ नहीं है लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि स्त्री की अस्मिता स्त्री की पहचान या स्त्रीवादी साहित्य का मतलब यह नहीं है केवल यौन प्रदर्शन या उसकी यौन अभिरुचि को विषय या यौन स्वाधीनता को ही चित्रित करना है। यह मैं मानती हूँ कि उसका इन चीज़ों पर अधिकार है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह अपनी अस्मिता और पहचान इन सब चीज़ों के लिए खोजें केवल मात्र स्त्री स्वाधीन के लिए आप यह दिखाना चाहेंगे कि उसे यह स्वतंत्रता है कि वह कहीं पर कुछ भी कर सकती है। तो मुझे लगता है कि कहीं स्त्री की मर्यादा की हानि होती है। इसलिए पहले जैसा लेखन नहीं आ रहा है-मैं आपको बताती हूँ पहले एक-एक साहित्य की कई विधाएँ जैसे कहानी और उपन्यास लेखन है, उसमें एक प्रमुख धारा थी-आंचलिक उपन्यास ग्राम केंद्रित उपन्यास। गाँव अँचल को पकड़ना और ऐसे हमारे लेखक हुए हैं जैसे फणीश्वर नाथ रेणु से शुरू करके नागार्जुन, उस समय के गाँव को प्रमुख रूप से अपने साहित्य के ज़रिए व्यक्त किया करते थे। गाँधी जी ने कहा था-गाँव की ओर लौटो। इसलिए उन्होंने गाँव की राजनीति, गाँव का समाज, गाँव का परिवेश-उन सब को आकार दिया। बांग्ला में भी और तमाम भारतीय भाषाओं में भी। लेकिन इधर हम देखते हैं कि ऐसा लेखन नहीं हो रहा है-यह जो आप कह रहे हैं: ज़मीन, जंगल, और जल से जुड़ी हुई चीज़ें नहीं आ रही है। क्यों नहीं आ रही है? क्योंकि लिखने वाले वह अगर अपने घरों में बैठकर एसी की हवा खाते हुए लिखेंगे तो निसंदेह उनमें भोगने वाला यथार्थ कहाँ से आएगा है? हमने सुना है यथार्थ जो हम चित्रित करते हैं अगर हमने उस जीवन को जिया नहीं हमने खेत में धान बोया नहीं, सोंधी मिट्टी की महक ली नहीं, अपने पाँव ज़मीन के मिट्टी में रखे नहीं और तालाब पोखर के जल में डूबाए नहीं तो हम कैसे वहाँ के वातावरण को चित्रित कर पाएँगे साहित्य में। इसलिए हम जो भी करते हैं बहुत ज़्यादा शहर केंद्रित हो जाता है। उसमें बहुत सारी चीज़ें नहीं आ पाती, जो सच्चाई है जिसको लेकर लोग ज़िन्दा है। आज गाँव में भी बहुत कुछ बदला है। अभी गाँव के लोगों के पास भी एक एंड्रॉयड फोन है। वह सारी चीज़ें साहित्य में नहीं आ रही है, केवल कुछ मुद्दे ही आ रहे हैं जिससे वह कृत्रिम सा लग रहा है, हमारी जीवन से जुड़ी मुद्दे उसमें नज़र कहीं नहीं आ रही है। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

 इसके रोकथाम इसके रोकथाम कैसे और किसके द्वारा सम्भव है? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

हम सोशल मीडिया को रोक पा रहे हैं क्या? नहीं ना? इसमें स्त्रियाँ ही सबसे ज़्यादा आलोचना की वस्तु बन रही है और स्त्री ही सबसे ज़्यादा आक्रमण की शिकार हो रही है। और मैं आपको यह कहना चाह रही हूँ कि जब कोई ट्रेंड आता है तो उसे रोका नहीं जा सकता। वह अपने नियम से चलेगी और हाँ लेकिन वह भी है कुछ साहित्यकार जो बेहतर लिख रहे हैं और ख़ासकर युवा साहित्यकारों में से कुछ लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं। उनकी सोच को मैं काफ़ी तारीफ़ करती हूँ। मैं यह चाहती हूँ कि आजकल वर्कशॉप जो नव कवि साहित्यकार के लिए किया जा रहा है जैसे साहित्य अकादमी, साहित्य संस्थाएँ वहाँ पर बहुत अच्छा काम होता है, वहाँ पर वर्कशॉप होता है कवियों की मीटिंग होती है। मुझे लगता है जो लोग नया लिखना चाहते हैं, वे लोग इन जगह जाए और उसे और वहाँ जाकर कुछ सीखें और थोड़ा पढ़े थोड़ा और जाने की क्या क्या यह समय की माँग है और फिर उस पर लिखे। तो मुझे लग रहा है कि उनका लेखन और ज़्यादा बेहतर होगा। 

डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

पुरस्कारों की राजनीति या यूँ कहे कि हर जगह गुटबाज़ी हावी है। आप ऐसी लेखिका है जो कभी भी इस गुटबाज़ी का हिस्सा नहीं रही। प्रमाण यह है कि आपने इतना अच्छा और बेहतरीन गद्य एवं कविताएँ लिखी हैं और साथ ही बांग्ला से हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किए हैं साहित्य अकादमी का अनुवाद पुरस्कार 2013 प्रयाग साहित्य सम्मेलन सम्मान 2013 मीरा स्मृति सम्मान 2014 आदि सम्मान से सम्मानित किया गया और आज भी यानी कि 18 सितंबर 2022 को देवी अवार्ड से सम्मानित सम्मान आपकी योग्यता और क्षमता को दर्शाता है। मैम, यह गुटबाज़ी जो कई दशकों से चली आ रही है साहित्य, संस्कृति और लेखन का नुक़्सान कर रही है या नहीं-इस पर प्रकाश डालें। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

इस पर मैं कुछ भी नहीं कहना चाहती हूँ क्योंकि यह बहुत अधिक विवादास्पद मुद्दा है। हालाँकि मुझे 2013 से साहित्य अकादमी से साहित्य अनुवाद के लिए यह पुरस्कार मिला है। यह मेरे लिए सबसे गर्व की बात है कि सबसे पहले पुरस्कारों में साहित्य अकादमी से मेरी झोली में मिला है तो इसके बाद मुझे नहीं लगता है कि और कुछ मिलना चाहिए क्योंकि मुझे वही सबसे पहले मिल गया है। हालाँकि मुझे इसके साथ-साथ और कई पुरस्कार भी मिले हैं और अब तक मिल रहे हैं और अंत में देवी अवार्ड अवार्ड से जो 18 सितंबर 2022 को मिला है और इसके बीच लगातार साहित्य लेखन के लिए अवार्ड मिलता रहा है और अकादमिक गतिविधियों के लिए भी मिला है, प्रशासनिक गतिविधियों के लिए दिए भी मिला है जैसे आज का द्रोणाचार्य पुरस्कार। इस पर ऐसा मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगी। अभी भी लोग हैं जो आप की क़द्र करते हैं अभी भी समाज में ऐसे लोग हैं जो आप की क़द्र करते हैं समाज में ऐसी संस्थाएँ भी हैं जो आप को सम्मानित करती है और ख़ासकर वह स्त्री जो घर बाहर सब कुछ सँभाल रही है उनकी नज़रों में आता है। ऐसा नहीं है कि वह हर जगह वंचित होती है कम से कम मैं ऐसा नहीं सोचती हूँ। लेकिन हाँ कभी कभार सुनने में ऐसी बातें आती है कि किसी के साथ शायद पक्षपात हुआ है। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

अब कुछ सवाल आपके लेखन और लेखन प्रक्रिया के बारे में। आपकी कई चर्चित कहानियाँ है उनके विषय और मुद्दे आपने कैसे चुने और उन्हें लिखने के बाद आपको कैसा अनुभव हुआ? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

असल में मैं काफ़ी समय लेकर एक कहानी लिखती हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं झट से बैठी और लिख लिया या फिर एक महीने में कई कहानियाँ लिख दिए। कहानी लिखने से पहले मुझे काफ़ी सोचना पड़ता है। किसको मैं कैसा रूप दूँ, इसका अंत जो कैसा हो क्योंकि कहानी का अंत मेरे लिए सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। कहानी की शुरूआत और अंत बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हर कहानी में एक ऐसा चरम बिंदु या घटना या ऐसा कुछ तो वहाँ रहेगा कि कहानी जो अपने आप पूरी तरह से संपूर्णता पाती है, पाठक के लिए एक संदेश छोड़ जाती है और मेरी कहानियों में मूल्य बोध होता है। बचपन में हम लोगों को मोरल साइंस पढ़ाई जाती थी लेकिन आजकल सिलेबस से इसे हटा दिया गया है किन्तु मूल्यों का पाठ बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। जिस तरह अनुशासनहीनता की बात करते हैं कि बच्चे इस समय के अनुशासनहीनता में है और आजकल बच्चे बहुत अधिक सोशल मीडिया में रहते हैं और माता पिता और गुरु गुरु से बुनियाद बनाने होंगे और गुरु से ज़्यादा और कोई नहीं क्योंकि उसी से हम सबसे ज़्यादा सीखते हैं और प्रभावित होते हैं और कभी-कभी आपकी छात्रा आपके इस स्टाइल को आत्मसात कर लेती है और मैं यही सोच रही हूँ कि यह चीज़ें आप बचपन से ही जड़ में नहीं डालेंगे तो कैसे होगा और अपनी जड़ को जवानों जो अपनी जड़ से कट जाएगा तो अपनी शाखाओं का विस्तार नहीं कर पाएगा जिस पेड़ की जड़े नहीं है वह क्या अपने आप को विस्तार दे सकता है। बच्चे भी ऐसे ही है। उनके कोमल मन को आपको हीगढ़ना होता है। मेरी कहानियाँ ऐसी ही होती है कि जो आपको एक सीख दे। मेरी कहानियाँ भी सामयिक समस्याओं परआधारित होती है। मैंने कोविड के दौरान कोविड के डर, उसके आतंक को समाज के लोगों ने झेला है, रसिया यूक्रेन का युद्ध के समय लोगों ने किस तरह के आतंक और परिवेश को जिया है, लड़कियाँ किस तरह असुरक्षित जीवन यापन करती है, बच्चों का बचपना कैसे छीन लिया जा रहा है, संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित हो रही है। मेरी कहानी के जो पात्र हैं-वह मेरी छात्राएँ हैं, मेरे रिलेटिव, मेरे कलीग है यानी कि जीते जाते पात्र हैं। मुझे लगता है कि कहानी को प्रासंगिक बनाने के लिए और साथ ही उसमें मूल्य बोध डालने के लिए सबसे बेहतर तरीक़ा है कि मिथ को आधार बनाएँ तो वह परीक्षण निरीक्षण भी मैं कर रही हूँ। सदी का शोक गीत, रेेश का घोड़ा दोनों मेरी कहनियां प्रकाशित हो चुकी है। रेश का घोड़ा-ऐसे पिता की कहानी है जिसके बच्चे बहुत ही सक्सेसफुल होते हैं लेकिन अंततः वह रेस का घोड़ा ही बना रहता है और रेस का घोड़ा कभी बोझ नहीं उठाते हैं, उनको अपने माँ बाप बोझ लगते हैं। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आप एक संवेदनशील कवयित्री हैं और इतनी व्यस्त ज़िन्दगी की भाग दौड़ के मध्य मैं समझती हूँ कि कविता साहित्य हमें जीने का संबल और ऊर्जा देती है। आपके मन पसंद कवि और लेखक कौन हैं? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

मेरे मन पसंद कवि और लेखक एक या दो नहीं है बल्कि कई है। बांग्ला में ताराशंकर बंधोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, अँग्रेज़ी में थॉमस हार्डी, शेक्सपियर आदि और हिंदी में फणीश्वर नाथ रेणु, निराला, मुक्तिबोध, लीलाधर मंडलोई, अज्ञेय आदि मलयालम के शिवशंकर पिल्ले आदि हैं। विविध भाषाओं की जानकारी रखने के कारण मुझे विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य में गोता लगाने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरे पिता आर्मी में थे और मुझे कई कई जगहों का दौरा करना पड़ता था जहाँ जहाँ वे जाते थे हम लोगों को लेकर जाते थे और स्थानीय स्कूल में डालते थे और जिससे मुझे तकलीफ़ बड़ी होती थी साथ ही ग़ुस्सा भी आता था हर जगह नए हर बार नए जगह जाते थे तो कहीं पर डोगरी है तो कहीं पर उर्दू मीडियम स्कूल इससे क्या हुआ कि मेरे लिए मैंने वह सारी भाषाएँ सीखे जो बाद में चलकर साहित्य अकादमी से जुड़ी इन्हीं भाषाओं की जानकारी के रूप में। वरना नहीं होता यह सब मेरे लिए आसान। मेरे जीवन दर्शन को बहुत अधिक प्रभावित किया है-वह है साहित्य। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

बांग्ला और हिंदी भाषा के साहित्य में आप क्या अंतर महसूस करती है? कौन-सा साहित्य या लेखक अधिक मुद्दों पर आधारित लेखन कर रहे हैं और पाठकों के दिलों तक पहुँचते हैं? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–मैं समझती हूँ कि हिंदी और बांग्ला साहित्य में कोई अंतर नहीं है इन दोनों भाषाओं में काफ़ी सादृश्य है दोनों ही भाषाएँ एक दूसरे से बहुत कुछ लिया एवं दिया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था कि बांग्ला हिन्दी की बड़ी बहन है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने ' बैताल पच्चीसी ' का अनुवाद हिन्दी से किया था। इतने वर्षों पहले ही हिन्दी में अनुवाद हुआ था। इतने बड़े विद्वान ने जो स्त्री शिक्षा के प्रमुख प्रवर्तक थे, किया था। ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और भारतेंदु हरिश्चंद्र के बीच में काफ़ी पत्राचार हुआ करता था। वे दोनों एक दूसरे से मिल चुके थे। वे कलकता के संस्कृत कॉलेज में आए थे। यह बात कई लोगों को मालूम भी नहीं है। लेकिन वहाँ पर आप देखिएगा कि मैंने पुरानी दस्तावेज़ों को निकाला था। हिन्दी और बांग्ला के बीच एक सेतु का काम हमेशा से होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। मैंने भी कम से कम 60 कवियों को हिंदी से बांग्ला में अनुवाद करके लाई हूँ। इसी तरह बांग्ला के कवियों को हिंदी में भी। हिंदी के केदारनाथ जी को साहित्य अकादमी से निकला है सुनील गंगोपाध्याय की प्रेम कविताएँ राजकमल प्रकाशन से छपी है मैं समझती हूँ दोनों साहित्य ही अपने आप में बहुत ही रिच है उनका अपना एक लंबा इतिहास और परंपरा रहा है दोनों ही साहित्य कहीं ना कहीं एक दूसरे के पूरक हैं। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

मैम, आप यह बताइए कि ऐसे कौन से विषय हैं और मुद्दे हैं जिन पर आप काफ़ी समय से कोई किताब लिखने की तैयारी कर रही है या सोच रही है? वैसे प्रशासनिक कार्यों और ख़ासकर शिक्षा में नए नवा चारों के मध्य इतना समय निकालना मुश्किल होता है पर भारतीय स्त्री जिन्हें हम सब बहुत सम्मान करते हैं। घर साहित्य और नौकरी तीनों के मध्य अपने आप को शत प्रतिशत लगा देती है और कहीं ना कहीं अपने अस्तित्व को विलीन कर देती है तो आप बताएँ कहाँ विलीन होती हैं आप? 

प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

अभी मैं एक किताब का संपादन कार्य कर रही हूँ।”इति कवि कथा एवम् अन्य कहानियाँ “-बहुत ही जल्द आपके सामने आ जाएगा। महामारी कोविड के दौरान मैंने 250 से भी अधिक व्याख्यान दिए हैं। मुझे लगा कि इस विषय पर लिखूँ लोगों के आतंक दर्द और तकलीफ़ है जो मूल विषय बनाकर लिखा है। कोविड के समय लिखी मेरी कविता इस तरह है:
“कविता ही क्यों
“सोचा कहानी या उपन्यास लिखूँगी
भोर की बेला में
कल्पना उड़ान भरते हैं उस समय
दोपहर में निबंध या संस्मरण
परन्तु कविता-वह तो आधी रात को खटखटाती है
मेरे द्वार का साँकल
निशा की पुकार की तरह
हरियाली सुबह के इंतज़ार में तब”

मुझे मेरी ऊर्जा मेरी लेखन से ही मिलती है। दिन भर प्रशासनिक कार्य के उपरांत और गृहलक्ष्मी कार्य संपन्न करने के बाद मैं आधी रात को अपने आप से जब मुख़ातिब होती हूँ तो अपने आपसे एक सवाल पूछती हूँ-आज दिन भर मैंने ऐसा क्या कार्य किया है जिससे लोग मुझे याद रखेंगे। प्रशासक के रूप में मैं प्रशासनिक दायित्व भार का निर्वहन करती हूँ और व्यक्तिगत रूप से मैं सृजन की ओर ध्यान देती हूँ जिससे लोग मुझे एक लेखक के रूप में याद रखेंगे। 
एक प्रेम पर कविता है:

“नदी
मैं तुम्हारी सखी 
नदी बनकर बह जाती हूँ ताकि
हरी घास से तन ढंकता यह मधुमय पथ, असुरक्षा
की माला उतार फेंक 
दौड़ कर मेरी ऊंगली पकड़ लें 
स्तब्ध माधवी रात में।”

डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

हिंदी विश्वविद्यालय के उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में आप की महती भूमिका रही है, मैम। क्या इस विश्वविद्यालय में कुछ और नए पाठ्यक्रम जिसमें दर्शनशास्त्र से अधिक अध्ययन पीठ कल्चर और मीडिया स्टडीज सूफ़ी अध्ययन खोलने की भविष्य में योजना है? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

जब से मैं अकादमिक जगत में आई हूँ तब से ही मैं शिक्षा ज्ञान के साथ-साथ कौशल यानी की स्किल डेवलपमेंट पर ज़ोर देती हूँ जिससे भावी युवा पीढ़ी को जीविकोपार्जन में सहायता मिलेगी। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

अब कुछ एक लाइन के प्रश्न हमारे देश विदेश के पाठकों के लिए . . . . . . 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपका प्रिय व्यक्तित्व। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

मैं दो व्यक्तित्व से बहुत अधिक प्रभावित हूँ पहली मेरी माँ और दूसरा हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। उनकी प्रत्येक बातें प्रेरणादायक है। जैसे, “सपने वह होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।” 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपकी मन पसंद जगह। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

शिमला, कश्मीर, दार्जिलिंग—हमेशा से पहाड़ी जगह। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपकी मन पसंद फ़िल्में। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

मेन स्ट्रीम और आर्ट फ़िल्में दोनों ही (मुस्कुराते हुए)। बांग्ला में सत्यजीत रॉय, मृणाल सेन की फ़िल्में और हिंदी में श्याम बेनेगल की फ़िल्में। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपका प्रिय लोकगीत। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

बाउल, मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपका प्रिय अभिनेता बांग्ला और हिंदी में। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

अभिनेता बांग्ला में उत्तम कुमार गुरुदत्त और हिंदी में संजीव कुमार देवानंद। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपकी प्रिय अभिनेत्री बांग्ला और हिंदी में। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

अभिनेत्री बांग्ला में सुचित्रा सेन और हिंदी में मधुबाला वहीदा रहमान। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आप कुछ आपकी प्रिय क्लासिक किताबें। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

अँग्रेज़ी में शेक्सपियर की सारी किताबें, थॉमस हार्डी की किताबें, वर्ड्सवर्थ, शैली, ओहरन पामुख और हिंदी में प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद के नाटक, निराला, अज्ञेय, यशपाल, रेणु, कृष्णा सोबती आदि है। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

दुख या निराशा की घड़ी में आपको किस से प्रेरणा मिलती है? 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

(तस्वीर की ओर इशारा करते हुए . . .) स्वामी विवेकानंद माता शारदा और पिता राम कृष्ण परमहंस, चाणक्य नीति, विदुर नीति मेरे माँ, पिताजी, सास, ससुर, मेरे पति और मेरी बेटी बहुत अधिक साथ दिए हैं। मेरी बेटी तो मेरी सृष्टि है। “गीता” में श्री कृष्ण ने एक बात कही है, “ईश्वर कभी किसी को पाप पुण्य नहीं देता है। ईश्वर बुद्धि देते हैं। केवल बुद्धि।” उस बुद्धि से सुख बुद्धि होगी तो आप सही काम करोगे निर्बुद्धि होगी तो आप ग़लत काम करोगे। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

यदि आप प्राध्यापक नहीं होती तो क्या होती। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

नृत्यांगना। 15 साल तक कांचीपुरम भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य सीखा है मैंने। साथ ही संगीत भी। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

आपके अनुसार सफलता का मूल मंत्र क्या है। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है परिश्रम परिश्रम और परिश्रम। 
डॉ. संदीप अवस्थी एवं अनिता ठाकुर–

हिंदी प्रेमियों के लिए हिंदी के विकास के लिए आपका सुझाव और शुभ संदेश। 
प्रो. सोमा बंधोपाध्याय कुलपति–

हिन्दी प्रेमियों के लिए-मातृभाषा माँ के दूध के समान होता है। मेरी मातृभाषा बँगला है और हिंदी मेरी धरात्री भाषा है। अपनी भाषा का सम्मान करो। “भाषा को सीखोगे तो जगत को जीतोगे।” 

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