प्रेम की गाँठ

15-12-2024

प्रेम की गाँठ

प्रांशु वर्मा (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मुझे तुमसे नफ़रत नहीं, 
बस प्रेम की एक जटिल गाँठ है, 
खुलती नहीं है, कसती जाती है, 
तुम्हारे हर छूने से—
कभी मुलायम, कभी कठोर। 
 
तुम्हारी उँगलियों की छुअन में
करुणा है, मैं देखता हूँ। 
एक दृष्टि फेंकती हो, 
और दूर किसी और की बाँहों में
अपनी साँसें छोड़ देती हो। 
 
मेरा प्रेम कोई कुचला हुआ फूल है, 
तुम्हारे क़दमों के नीचे, 
और तुम उसे उठा नहीं पातीं, 
सिर्फ़ देखती हो दया से, 
जैसे एक बेजान चीज़ को देखा जाता है। 
 
मैं सोचता हूँ—
शायद एक दिन
तुम्हारा दिल अपने ही बीहड़ में
मेरे लिए किसी छाँव की तलाश में निकलेगा, 
जहाँ यह नफ़रत और प्यार की जंग
किसी शांत अंत की ओर बढ़ सकेगी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें