क्या हम सच में श्रेष्ठ हैं

01-12-2024

क्या हम सच में श्रेष्ठ हैं

प्रांशु वर्मा (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

क्या हम लोकतांत्रिक हैं? 
जब लाखों प्रजातियाँ हमारे कारण
धरती से लुप्त हो गईं, 
जब हमने अरबों जीवन छीने, 
और स्वयं को उच्च समझा। 
 
शेर शेर का न्याय नहीं करता, 
न है बंदर अपने साथी का न्यायधीश, 
फिर हम क्यों ठहराते हैं न्याय? 
क्या हम सच में बुद्धिमान हैं, 
या हमारी समझ सीमाओं में बँधी है? 
 
हम युद्ध के खेल खेलते हैं, 
अपनी ही प्रजाति को मिटाते हैं, 
क्या हम सबसे उदार हैं? 
हमने धरती का बँटवारा किया, 
क्या यह पूरी धरती हमारी है? 
 
हमारी दुनिया में युद्ध है, 
अकाल की पीड़ा है, 
भ्रष्टाचार और बलात्कार की छाया है, 
क्या हम नैतिकता के मानक हैं? 
 
फिर भी, हम दावा करते हैं श्रेष्ठता का, 
कहते हैं, यह संसार हमारे लिए बना है, 
परन्तु क्या हम भूलते हैं, 
कि हम मात्र एक जीव हैं, 
अनगिनत प्रजातियों के बीच, 
और यह धरती केवल हमारी नहीं। 

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