क्रंदन अंतिम क्षण में

01-12-2024

क्रंदन अंतिम क्षण में

प्रांशु वर्मा (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

क्या करेंगे जब जीवन हाथ से छूट जाएगा, 
और मृत्यु की परछाईं सिरहाने बैठी होगी? 
दो घंटे शेष, समय की बिसात पर मोहरे गिरे पड़े, 
हम निहार रहे होंगे, 
वो बीता हुआ जीवन जो आँसुओं में डूबा था। 
 
प्रसिद्धि के लिए, पैसे के लिए, 
प्रेम के लिए तरसती आँखें, 
छोटी-छोटी बातों पर बिखरी हुई हँसी, 
सब कुछ हमारे सामने फैला होगा—
लेकिन अब कोई राह नहीं बची। 
 
धरा का सोना, जो मेरे पाँव तले चमकता था, 
शायद फिर कभी महसूस न कर पाऊँ। 
या ये मेरी अंतिम विदा हो—
जहाँ चेतना सदा के लिए मिट जाएगी। 
ये अंधकार, ये भयावह अनंत, 
मुझे भीतर से खा रहा होगा। 
 
हम रो रहे होंगे, 
और जीवन से कुछ घड़ियाँ और माँग रहे होंगे, 
क्योंकि अब, आख़िरी क्षणों में, 
हमें अहसास हुआ है—
कि वो जीवन, मेरा था। 
 
वो रिश्तों का नहीं, 
पैसे और प्रसिद्धि का नहीं, 
उन चेहरों का नहीं जिनके लिए मैं सिसका। 
मैं ख़ुश हो सकता था—
लेकिन मैंने हर लम्हा खो दिया। 
 
अब, जब मृत्यु की छाया साथ बैठी है, 
मैं बस थोड़ा और जीना चाहता हूँ, 
ख़ुश होकर, 
जैसे वो जीवन मेरा ही था। 

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