प्रांशु वर्मा – हाइकु – 001
प्रांशु वर्मा
साँस का बिम्ब
छाँव की चाहत,
बिना जड़ें भी फलें,
सूखे रिश्ते।
वक़्त की देह
गमले में बंद,
जड़ें खोजें आकाश,
ख़्वाहिशें मौन।
तजुर्बे का स्वाद
मिट्टी की प्यास,
इंसान भी पत्तों-सा,
रोशनी में मौन।
अंतिम क्षण
बिना पानी,
मुरझाए सब ख़्वाब,
गमला सूना।