फागुनी हाइकु
मानोशी चैटर्जीबिछा पलाश
फागुन बिखेरता
रंग गोधूली
खेले सरसों
वसंती हवा संग
धरा लाजाये
धूप थिरके
पीली चूनर ओढ़
अंग सजाये
बरसा प्रेम
होरी के रंग संग
भेद मिटाये
पी संग खेले
गोरी जी भर होरी
लाज भुलाये
डारा पिया ने
ऐसा रंग प्रेम का
छूटे न अंग
ए री कोयल
अब मत पुकार
निठुर पी को