न्याय-अन्याय - 02
मानोशी चैटर्जी2.
दिल्ली एयरपोर्ट पर भैया लेने आये थे उसे। भैया अभी भी वैसे ही लगते हैं। एक साल पहले तलाक़ हो गया था भैया का। अंदर से टूट चुके थे भैया। अब जैसे एक थकान दिखने लगी थी भैया के चेहरे पर भी...पहले भैया हमेशा हँसते थे, सन ग्लासेस, धूप हो न हो और हमेशा ही जैसे चिल्ला कर बात करते थे। भैया से वह शादी के बाद पहली बार मिल रही थी। उसकी शादी में भैया अपने ससुराल में थे। भैया ने कहा था कि भाभी की तबीयत ख़राब हो गई थी और वो आ नहीं पाये थे शादी में। फिर तो दो दिन बाद ही वो चली आई थी विदेश। भैया को देखते ही रो पड़ी वो। भैया के कंधे के सहारे में कितना सुकूं था। टैक्सी में भैया के पास बैठ कर फिर आँखों में आँसू आने लगे थे उसके। रुँधी हुई आवाज़ में उसने भैया से पूछा,
"पापा ठीक हो जायेंगे न?"
भैया ने कोई जवाब नहीं दिया।
वह सीधे अस्पताल जाना चाहती थी मगर भैया पहले उसे घर ले कर गये।
"मम्मी कहाँ हैं अभी?"
"घर"
"दीदी कब आईं?"
"वह नहीं आ पाईं हैं, शायद दो-तीन दिन में आयें।"
दीदी का भी मधूलिका को समझ नहीं आता। दीदी उससे ५ साल बड़ी थीं। उसकी शादी के एक साल पहले दीदी की शादी हुई थी दुबई में। दीदी की शादी के बाद जैसे पापा जल्दी-जल्दी उसकी भी शादी करना चाहते थे। दीदी अपनी शादी के बाद फिर कभी भी माइके नहीं आई थीं। उसकी शादी में भी नहीं। उसकी शादी में रिश्तेदारों, दोस्तों, सभी ने आश्चर्य प्रकट किया था कि शादी में उसके भाई या बहन कोई भी नहीं आये थे। उसे ख़ुद को बहुत ख़राब लगा था। गाड़ी में सारा रास्ता जैसे एक मनहूस ख़ामोशी में ही बीता। न भैया ने कोई बात की, न ही उसने।
घर पहुँच कर उसने माँ के और बूढे हो आये चेहरे को देखा और रो पड़ी। माँ को गले से लगा कर माँ को साँत्वना देने की कोशिश करने लगी वो। माँ के आँखों में आँसू नहीं थे। माँ ने उससे कहा, "खाना खा लो पहले फिर भैया अस्पताल ले जायेंगे तुम्हें, विज़िटिंग आवर्स शाम को ही हैं।"
"माँ ये क्या हो गया..." - वो एक बार फिर रो पड़ी थी।
शाम को वह अस्पताल भैया के साथ गई। माँ सुबह हो कर आईं थीं अस्पताल इसलिये नहीं आईं उसके साथ। उसने एक बार कहा भी माँ से मगर माँ नहीं आ पाईं उसके साथ। अस्पताल के आई. सी. यू में सिर्फ़ एक आदमी जा सकता था एक वक़्त में। जब उसने डाक्टर से अंदर जाने की इज़ाज़त माँगी तो पहले से ही कोई विज़िटर पापा के पास था, जिसके वापस आने के बाद ही वह अंदर जा सकती थी। कोई दस मिनट बाद अंदर से एक महिला बाहर निकली। उसे उसने कभी देखा नहीं था पहले। कोई ४५ साल की उम्र होगी उस औरत की, हल्की पीली साड़ी में, लंबे बाल, आकर्षक व्यक्तित्व...एक शब्द में जिसे सुंदर कहा जाये। अंदर पापा के शरीर से लगे कई मशीन और ट्यूब देख कर वह फिर रोने लगी। पापा ने उसकी तरफ़ देखा और धीरे से उसे और पास आने का इशारा किया। उसकी बाँह पकड़ कर पापा ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा,
"बेटा, सफ़र ठीक था?"
"हूँ"
कोई पंद्रह मिनट पापा के हाथ पकड़ कर बैठी रही वह। बाहर आ कर भैया को अंदर भेजा उसने। कमरे से बाहर उसने उसी महिला को सफ़ेद जैकेट पहने डाक्टर से बात करते देखा। कोई डाक्टर होगी शायद वह भी। ऐसा सोच कर वह पापा की तबीयत पूछने आगे बढ़ी। मगर दोनों की बातचीत से उसे लगा कि वह डाक्टर तो नहीं। डाक्टर के साथ उस औरत की बात ख़तम होने की प्रतीक्षा करती रही वह। बात ख़तम होने पर उसने आगे बढ़ कर ख़ुद का परिचय डाक्टर से कराया और पापा की तबीयत के बारे में पूछने लगी। उसने ख़याल किया कि वह औरत पीछे मुड़ कर उसे ठहर कर देखने लगी थी। डाक्टर से उसकी बात ख़तम होते ही वह औरत उसके पास आई और कहा,
"मेरा नाम सुदर्शना है, तुम मधूलिका?"
"जी, आप को मैंने पहचाना नहीं!"
उस औरत ने उसकी ठुड्डी को प्यार से छुआ और कहा,
"बेटा, तुम पापा की जान हो, उनके पास रहो।"
उसने उस औरत की तरफ़ देखा और कहा,
"आप को मैंने पहले तो नहीं देखा है कभी...आप...?"
मधूलिका असमंजस में थी। भैया भी बाहर आ गये थे अब, विज़िटिंग आवर ख़तम हो रहा था। सुदर्शना नाम की वह औरत अब भैया से बात कर रही थी और भैया भी उसके साथ सिर हिला कर हामी भर रहे थे। फिर एक पर्चा दे कर उस औरत ने भैया को कहीं भेज दिया। उसे पापा को एक बार और देखना था। वह आई सी यू के अंदर चली गई और पापा के सर पर हाथ फेरने लगी। पापा सो रहे थे। "तुम पापा की जान हो, उनके पास रहो"....शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे।
"पापा, आई लव यू"
धीरे से कह कर पापा के माथे को चूम कर वह बाहर आ गई।
बाहर अकेले बेंच पर बैठ कर वह भैया के आने का इंतज़ार करने लगी। अस्पताल उसकी आशा से ज़्यादा साफ़सुथरा था। मगर नर्स बहुत ज़ोर-ज़ोर से बात कर रहीं थी। हँसना, गाना सब ही चल रहा था नर्सों के बीच। आई सी यू के सामने कैसे इतना शोर हो सकता है...। सभी गंभीर मरीज़ होते हैं। भैया दवाइयाँ ले कर आ गये थे। आई सी यू के अंदर जा कर डाक्टर को दवायें दे कर, भैया उसके पास आ कर बेंच पर बैठ गये।
"पापा को देखा? पापा बहुत याद कर रहे थे तुझे। परसों सुबह बाथरूम में गिर गये। आवाज़ से मैं अंदर गया तो देखा कि पापा अचेत पड़े थे। मैसिव हार्टअटैक आया था। स्ट्रोक नहीं था। उसी वक़्त अस्पताल ले जाना पड़ा...तभी आई सी यू..."
ये सुदर्शना कौन हैं?"
"चल चलते हैं, घर...माँ इंतज़ार कर रही होगी...तू भी तो थकी है"
भैया के साथ गाड़ी में चुपचाप बैठ कर चली आई वह।
रात को माँ के पास सोई थी मधूलिका पर नींद नहीं आ रही थी। पापा की चिंता और ऊपर से जेट लैग। माँ से भी रात में काफ़ी देर तक बात होती रही थी उसकी। सुबह के तीन बज रहे थे अब, माँ सो चुकीं थीं। सुबह आठ बजे फिर होता है विज़िटिंग आवर...उसे उठना भी था जल्दी। घर से अस्पताल कोई आधे घंटे की दूरी पर था। कल अस्पताल से आ कर मनोज को फ़ोन करेगी वह। ऐसा सोच ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी। मधूलिका ने फ़ोन उठाया। अस्पताल से फ़ोन था...
"मिस्टर अगरवाल हैड अनदर हार्टअटैक टुनाइट। वी वान्ट सम्वन फ़्राम द फ़ैमिली हियर" ।
अस्पताल में उसी औरत को उसने बेंच पर बैठे देखा। सुबह वाली पीली साड़ी में ही सर झुकाये हुये उस औरत ने सर उठाया। भैया ने लगभग दौड़ कर जा कर उस औरत से पूछा,
"क्या हुआ है?"
मधूलिका ने उस औरत को हताश सी खड़े होते देखा और फिर भैया के कंधे पर अपना सर रख कर रोते हुये। पास खड़ी माँ ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ी और फिर भैया रोने लगे। सब जैसे एक कहानी सा क्रमबद्ध हो रहा था। उसे समझ आ गया कि क्या हुआ है। उसे रोना नहीं आ रहा था...या नहीं... बहुत ज़ोर से रोना आ रहा था, नहीं...बहुत तेज़ हँसी आ रही थी, नहीं... शायद चीखने का मन हो रहा था...वह चीख उठी ज़ोर से...और फिर उसे याद नहीं क्या हुआ...सब कुछ धुँधला सा होने लगा था...
– क्रमशः