हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
मानोशी चैटर्जीहज़ार क़िस्से सुना रहे हो
कहो भी अब जो छुपा रहे हो
ये आज किस से मिल आये हो तुम
जो नाज़ मेरे उठा रहे हो
जो दिल ने चाहा वो कब हुआ है
फ़ज़ूल सपने सजा रहे हो
सयाना अब हो गया है बेटा
उम्मीद किस से लगा रहे हो
तुम्हारे संग जो लिपट के रोया
उसी से अब जी चुरा रहे हो
मेरी लकीरें बदल गई हैं
ये हाथ किस से मिला रहे हो
ज़रूर कुछ ग़म है ‘दोस्त’ तुम को
ख़ुदा के घर से जो आ रहे हो