नेता के दिमाग़ में
धर्मपाल महेंद्र जैननेता के दिमाग़ में
रची-बसी है कुर्सी, चार पायों पर खड़ी
एक पाया पैसा, एक पाया मीडिया
एक पाया बिरादरी, एक पाया प्रशासन
चमचों की पीठ
और जनता की सीट।
नेता के दिमाग़ में
चलता रहता है संतुलन का गणित
टिके रहने का प्रमेय
छोटे-बड़े कोणों का जोड़-तोड़
कुछ भी बने त्रिभुज, चतुर्भुज या बहुभुज
बस बननी चाहिए सरकार।
नेता के दिमाग़ में
हथगोले, कट्टे, बारूद, यूरिया, एसिड, गुंडे
सब रहते हैं एक साथ शांति से
डगमगाता नहीं वह, कँपकपाता नहीं वह
जनता की सेवा में करबद्ध
विष पान को मानता है वह अमृत
नेता के दिमाग़ में
चलती है साधना
गुरूजनों के अँगूठे काट कर रख लिए उसने
दक्षिणा में चढ़ा दिए सरकारी संस्थान
मित्रों को थमा दी बिचौलियों की थैलियाँ
कितना सरल है अजातशत्रु बनना।
नेता के दिमाग़ में
एक लक्ष्य है, एक छवि है
कुर्सी
जिस पर बैठ
वह फेंक सके अपने पासे
खेल सके सत्ता का खेल।