हँसी के कोरस में

01-08-2023

हँसी के कोरस में

धर्मपाल महेंद्र जैन (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

दिन मुट्ठी में बँधता नहीं
रेत-रेत रीतता है सोलह घंटे
उत्तरी गोलार्द्ध में बिना ठहरे। 
मैं ठिठक कर हर जगह
देखना चाहता हूँ तुम्हें
थका-थका रुकना चाहता हूँ
और सुस्ताना भी। 
उत्तरायण की लंबी दूरी
तय करके भागते व्यस्त समय को
विदा दे दी है इस शाम
अब तो आ जाओ तुम। 
 
लेक ओंटेरियो पर
कितने दोस्त हैं हमारे
लापरवाह हवा है
झिलमिलाता उजास है
ठहरे पंछी हैं
इतराती बतखें हैं
मुस्कुराते जंगली फूल हैं
किरणें पानी पर सुस्ता रही हैं। 
तुम्हारी हँसी के कोरस में
हम सबको गाना है
बस भी करो, आ जाओ। 

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