जिजीविषा
धर्मपाल महेंद्र जैनकच्ची हंडियाँ आग में पक रही हैं।
शताब्दियाँ गवाह रहीं
पुनर्नवा हो जीने का आदी समय
माटी को मथता है
घरौंदे बनाता है, सजाता है
अपने सृजन पर इतराता है
इतिहास में महल और
हाशिए में लिखता है
कच्चे-पक्के मकानों और
दूर बसी झुग्गी-झोपड़ियों को।
समय लिखता है
महल बचाने के लिए
आहुतियों की कभी
कमी नहीं होने देते राजा
पर ढहना अनिवार्य है
उनके लिए भी।
माटी वही बात कहती है
‘एक दिन ऐसो आएगो........’
और कुम्हार नया लोंदा उठा
अपने चाक पर रख
मुस्कुराता कहता है
तुम्हारे संग चलना
सीख लिया है समय मैंने
कच्ची हंडियाँ
आग में फिर पक रही हैं।