कब ये धरती और कब अंबर बचाना चाहती है
अश्विनी कुमार त्रिपाठी2122 2122 2122 2122
कब ये धरती और कब अंबर बचाना चाहती है
शाइरी इंसान का तेवर बचाना चाहती है
शब्दजालों के लिए कुछ वर्ण चुनती मकड़ियों से
वर्णमाला प्रेम के आखर बचाना चाहती है
वो जवानी और थी जो सर कटाना चाहती थी
यह जवानी सिर्फ़ अपना सर बचाना चाहती है
अनगिनत अपनों ने चाहा घर को मेरे तोड़ देना
माँ मगर हर हाल में यह घर बचाना चाहती है
जो कि आँसू बन के बहने के लिए बेताब से हैं
आँख मेरी वो हसीं मंज़र बचाना चाहती है
यह ग़ज़ब की बात है डरती है वो भी आदमी से
पर सियासत आदमी में डर बचाना चाहती है
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