इक तमाचा गाल पर तब मार जाती है हवा

01-10-2023

इक तमाचा गाल पर तब मार जाती है हवा

अश्विनी कुमार त्रिपाठी (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

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इक तमाचा गाल पर तब मार जाती है हवा  
जब वतन की सरहदों के पार जाती है हवा  
 
उनकी साँसों की महक लाती है मेरी साँस तक 
मुझ पे ख़ुशियों का ख़ज़ाना वार जाती है हवा  
 
मेघ ला कर जब बुझाती है धरा की प्यास को  
शोक  में डूबे  कृषक  को तार  जाती  है  हवा 
 
तब मुझे आभास होता है स्वयं की जीत का  
जब किसी जलते दीये से हार जाती है हवा  
 
जिस घड़ी यह मित्रता करती है ‘अश्विन’ आग से 
उस  घड़ी  सच  मानिए  बेकार  जाती  है  हवा  

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