बहुत होता सरल अपनी अना से दूर हो जाना
अश्विनी कुमार त्रिपाठी1222 1222 1222 1222
बहुत होता सरल अपनी अना से दूर हो जाना
अगर आता हमें रसखान मीराँ सूर हो जाना
विफलताओं ने तोड़े हैं सदा ही दंभ के पर्वत
सफलताओं ने सिखलाया हमें मग़रूर हो जाना
पसीने पर तुम्हारे जिसने अपना खूँ बहाया है
भुला देगा उसे इक दिन तेरा मशहूर हो जाना
हँसी देखी लबों की पर कभी ना देख पाए वो
मेरे दिल पर बने इक ज़ख्म का नासूर हो जाना
मुहब्बत में कभी ना हाथ अपना आज़माएँ वे
जिन्हें बर्दाश्त ना होगा बिखरकर चूर हो जाना
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