कब किसी बंदूक या शमशीर ने रोका मुझे

01-10-2023

कब किसी बंदूक या शमशीर ने रोका मुझे

अश्विनी कुमार त्रिपाठी (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

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कब किसी बंदूक या शमशीर ने रोका मुझे 
कुछ उसूलों ने तो कुछ तक़दीर ने रोका मुझे 
 
जिस बुलंदी के शिखर की राह आसाँ थी वहीं 
स्वाभिमानी ख़ून की तासीर ने रोका मुझे 
 
जब क़लम ने तालियों की चाह में लिक्खी ग़ज़ल 
तब किताबों से निकलकर मीर ने रोका मुझे 
 
चंद सिक्कों की खनक पर डगमगाया जब कभी
पर्स में रक्खी तेरी तस्वीर ने रोका मुझे 
 
बोलते लब रोक ना पाए मेरे क़दमों को जब 
मौन आँखों से छलकते नीर ने रोका मुझे

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