फ़ादर्स डे
सन्दीप तोमरअभी गर्मियों की छुट्टियाँ चल रहीं थीं तो बच्चे देर से उठते थे। गोया बिना किसी को जगाये ही वो ड्यूटी के लिए निकल गया था। आज उसके स्कूल में सिविल सर्विसेज़ का एग्ज़ाम था। डयूटी ख़त्म करके वह लौटा ही था कि बेटी ने गेट पर ही रोक लिया, "बापू, आप बड़े ही गंदे हो सुबह ड्यूटी जाने से पहले मुझे उठाया क्यों नहीं। और ऊपर से फोन भी बंद करके बैठे हो।"
"अरे बिटिया, सिविल सर्विसेज़ के एग्ज़ाम में फोन को ऑन रखना ही अलाउड नहीं है इसलिए बंद रखना पड़ा, पर ऐसी क्या अमरजेंसी थी, जो तुम्हे फोन करना पड़ रहा था?"
"बापू, आज फ़ादर्स डे है ना, विश नहीं करना था क्या? लो मैंने आपके लिए ये कार्ड बनाया है," बिटिया ने कार्ड उसके हाथ मे थमा दिया।
कार्ड में पिता के साथ बच्चे की तस्वीर देख उसकी आँखों मे आँसू आ गए। उसे वो पल याद आया जब पत्नी की रोज़-रोज़ के उलाहनों से तंग आकर वो पिताजी को ओल्ड ऐज होम छोड़ आया था।
पिताजी का चेहरा उसकी आँखों के सामने तैर रहा था।