कंगले की माँ
सन्दीप तोमररमेशर की माँ की अर्थी श्मशान में उतारकर चिता पर लिटाने की तैयारी हो रही थी. . लोगों ने अर्थी पर से ऊपर डाले गए कपड़े उतारकर अलग रख दिए . . अब पार्थिव शरीर को चिता पर चिता पर लिटा दिया गया था. . .
रमेशर ने अपनी माँ की चिता को दाग दिया. . पूरा क्रियाक्रम विधिपूर्वक पूरा किया गया था. . जग्गू डोम ने पूरी क्रिया में भरपूर साथ दिया. . .
आग की लपटें ऊपर उठ चुकीं थीं. . जग्गू की पत्नी और जग्गू अर्थी पर से उतारे गए कपड़े इत्यादि इकट्ठे करने लगे . . .
"क्यों जी, किसका अंतिम संस्कार हो रहा है," जग्गू की पत्नी ने पूछा. . .
"रमेशर की माँ का," जग्गू ने जबाब दिया . . .
"कौन रमेशर? कहीं ये तुलवा चमार का बेटा तो नहीं.?" उसकी बीवी ने पूछा. . .
"हाँ वही है," जग्गू ने अनमने मन से कहा . . .
"हे ईश्वर, तुझे भी इस कंगले की माँ ही मिली थी मारने के लिए. . उसके तो रिश्ते-नाते वाले भी लगता है उसके जैसे ही कंगाल हैं," जग्गू की बीवी ग़ुस्से में बोल रही थी. . .
"हाँ भागवान्, साले रमेशर की माँ मर गयी. . . हमें क्या फ़ायदा हुआ? अर्थी से गिनी हुई चार भी नहीं मिली . . ."- जग्गू कह रहा था. . .
जग्गू ने कपड़ो की पोटली बाँध कर लाद ली. . . और घर की ओर चल दिया. . .
आग की लपटें अब भी उठ रहीं थीं. .
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आभार टीम साहित्यकुंज