फ़सल

सन्दीप तोमर (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मैं खिड़की से देखता हूँ
अपने पिता को
वह पिता, जिसने
बहा अपना पसीना
सींचा है मुझे
और बनाया है
एक कमज़ोर पौधे से
मज़बूत विशाल दरख़्त, 
वह पिता सुबह निकल पड़ता
खेत में
कभी रोपने धान, तो कभी
उगाने गेहूँ की फ़सल
रात को मैं खिड़की खोल, 
देखता—उस पिता को
जो नींद से उठ
चल पड़ता—
खेत को सींचने, 
ताकि
खेत की फ़सल से
पल्लवित हो उसकी अपनी फ़सल, 
वह पिता हर रोज़
मरता, जब बेमौसम बरसात, 
या फिर सूखा
बरसाता अपना क़हर
तब वो पिता
डूबता चिंता में
मुझे मैं बनाने की चिंता में
घुल जाता वो पिता
और मैं बस बंद कर खिड़की
जुट जाता
उसके सपने का
सपना पूरा करने में। 

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