बुढ़ापा तो बुढ़ापा है . . .
अशोक परुथी 'मतवाला'
बुढ़ापा तो बुढ़ापा है, कौन जाहिल कहता है कि उमर तो बस एक नंबर है?
कितना आसान हो गया है मोहम्मद रफ़ी या किशोर दा की तरह गाने का नाटक करना आजकल। मैं ही सब कुछ हूँ—गीतकार, कैमरामैन (मेरा कैमरा मेरे हाथ में है)।
दिखता ठीक से मुझे नहीं, गिरने का ख़तरा और ‘लक्क’/कमर टूटने का डर मुझे हर वक़्त रहता है, लेकिन दिल अभी जवान है जैसे कल ही पैदा हुआ हूँ।
‘वॉकर’ लेकर अब मैं चलता हूँ परन्तु शरीर अब उस साइकिल की तरह हो गया है जिसकी घंटी के सिवाय सब कुछ बजता है!
वैसे कोई घमंड नहीं, गैराज विच मर्सिडीज़ E-350 दा साथ देन लई (का साथ देने के लिए) एक और गाड़ी खड़ी है।
“दो रोटियाँ ते कलहम कलही इक जान
हाय वे मेरिया रब्बा, बंदा फेर वीं किन्ना परेशान!”
(दो रोटियाँ और निपट अकेली एक जान/ हाय मेरे रब्ब, बंदा फिर भी कितना परेशान!)
—मतवाला
मुझे अपनी दुआओं में शामिल कीजियेगा और मैं वादा करता हूँ कि अपनी दवाएँ समय पर खाता रहूँगा! आठ से ज़्यादा गोलियाँ, कैप्सूल और दो-दो इंजेक्शन मुझे इस उमर में लग रहे हैं। आप भी अपना ख़्याल रखें। अब चलना नहीं हो रहा तो छड़ी को अपना हमजोली बनाए। गिरने के पश्चात बहुत कूल्हे टूट रहे हैं। गिरने के बाद सिर फट जाता है, हाथ पाँव प्लास्टर में रहने लगते हैं। दाँत टूटने पर आपकी रोटी बंद और डेंटिस्ट की ख़ूब चलने लगती है! किसी से प्रेम हो या न हो फिर भी किसी को भी ‘हार्ट-फ़ेल’ हो सकता है।
बाक़ी ख़ैरीसल्लाह, तुसी सुनाओ? (बाक़ी अल्लाह की ख़ैर है, आप सुनाओ?)
फ़ुज़ूल में लोग बकवास करते हैं कि सुबह जल्दी उठने से उमर बढ़ती है! मुर्ग़े को ही देख लो सुबह चार-पाँच बजे उठ जाता है और फिर शाम को उबलते तेल की कड़ाही में होता है!
होर दस्सो तुहानु कीवें दसा, कीवें चल रही है। (और बताएँ कि आपको कैसे बताऊँ, कैसे चल रही है)
भलेओ लोको हुन हाल पुछ पुछ के बीमार न कर देना, हाले मैं ठीक ठाक हाँ ते ओखे-सोखे अपनी क़िस्मत दा, सुकून दे नाल खा पी लैना ते वन-पवन्ना पा लैना! (भले लोगो अब हाल पूछ-पूछ के बीमार न कर देना, अभी मैं ठीक-ठाक हूँ और किसी तह अपनी क़िस्मत का और सुकून के साथ खा-पी लेता हूँ और कपड़े पहन लेता हूँ!)
बाक़ी सब अल्हा राखा! यह ज़िन्दगी छोटी है अपने पैसे दे नाल (के साथ) आनंद करो! नहीं तां सब ऐंठे/ऐथे (यहीं) ही रह जाना जे जिसदे पीछे सारी उमर रुले हो!
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