बगुला

अशोक परुथी 'मतवाला' (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“अजी, सुनो! इस रविवार को चंडीगढ़ से मेरी छोटी बहिन आ रही है। यह लो ज़रूरी चीज़ों की लिस्ट। मार्केट जाकर पहले मुझे कुछ चीज़ें ला दो ताकि पिंकी के आने से पहले मैं एक दो चीज़ें तो उसके लिए बना रखूँ। हाँ, कुछ मिठाई भी लेते आना . . . पिंकी को बंगाली मिठाई बहुत पसंद है!” 

 

छह महीने बाद . . . 

 

“हैलो, सावित्री, ऑफ़िस से इसलिए फोन किया है ताकि तुम्हें बता दूँ, कल शाम की गाड़ी से कुछ दिनों के लिए मोहन हमारे पास आ रहा है . . . उसके लिए भी खाना बना लेना! बाज़ार से आते, मैं क्या-क्या लेता आऊँ?” 

“उफ्फ, कितने दिनों के लिए वह आ रहा है? मेरी तो अपनी ख़ुद की तबियत सुबह से ख़राब है . . . मुझ से इस हालत में कुछ न बन पाएगा . . . तुम ऐसा करो मार्केट से ‘चाइनीज़’ ऑर्डर करवा लेना!” 

“कुछ दिन तो वह यहाँ रहेगा . . . यूनिवर्सिटी में उसे कुछ काम हैं!” 

“उसका अपना घर है, लेकिन आने से पहले कुछ एडवांस में तो वह हमें सूचना दे सकता है, न?” 

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