आजकल के शरवन!

15-10-2014

आजकल के शरवन!

अशोक परुथी 'मतवाला'

(हास्य-कविता, हरियाणवी भाषा में)

आजकल के 
छोकरे मने
बड़ा हैरान करां हैं!
माँ-बाप से,
राम-राम भी कोनी,
होराँ ने,
दिन-रात 
'सलूट' करै हैं !


आजकल के,
छोकरे मने
बड़ा परेशान करां हैं!
इंहाने अपने घर की 
ज़रा सी भी फिकर कोनी,
दूसरे लोकां का
हर वक़्त
पानी भरां है!


आजकल के,
छोकरे मने
बड़ा दंग करां हैं! ,
घर में बैठी,
माँ-बहिन की इज्जत न करै,
बाहर दूसरी 
छोकरियाँ के साथ 
दीदी- दीदी करै हैं !


आजकल के,
छोकरे मने
बड़ा परेशान करां हैं!
'फ़ेसबुक का पैंडा छोडे नी 
हर बार फ़ेल होवें सै,
और मने
'जूती लाह के 
अपने सिराँ पे 
दो-दो फेरण वास्ते’ 
हरपल मजबूर करां हैं!

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