हलधर नाग के लोक-साहित्य पर विमर्श

हलधर नाग के लोक-साहित्य पर विमर्श  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

हलधर नाग की सर्जना पर एक सार्थक विमर्श

संपादकीय

भारतीय भाषाएँ, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता आदि प्राचीनतम होने का तथ्य भारत के इतिहास को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान करता है। अतः यह स्पष्ट है कि दुनिया की सबसे पुरानी साहित्यिक विरासत भारत की है। वैदिक वाङ्मय मौखिक परंपरा में ही सहस्रों वर्ष सुरक्षित रहा। भारतीय समाज में, जनसाधरण के बीच तथा अनपढ़ लोगों में भी मौखिक परंपरा में विपुल साहित्य भंडार सुरक्षित है। भारत की तमाम भाषाओं का साहित्य ही भारतीय साहित्य है। समन्वित मिलीजुली संस्कृति के विकास में भारतीय साहित्य की बड़ी भूमिका है। भारतीय साहित्य की आत्मा उसकी विभिन्न भाषाओं में सृजित साहित्य में सुरक्षित है। भारतीय संस्कृति की गरिमा को बढ़ाने में भारतीय साहित्य की बड़ी भूमिका है। जिस भाँति साहित्य संस्कृति का अभिन्न अंग है, वैसे ही लोक साहित्य से लोक संस्कृति की समृद्धि सुनिश्चित होती है। लिपि और लिखित साहित्य की समृद्धि की वजह से प्रचलित भाषाओं के अलावा लिपिविहीन बोलियों में भी लोक-साहित्य सुसमृद्ध मौखिक परंपरा में ही सुरक्षित है। भारतीय साहित्य की समृद्धि का श्रेय उसकी विभिन्न भाषाओं में सृजित साहित्य को जाता है। विभिन्न भाषाओं में सृजित साहित्य भाषाज्ञान की सीमाओं के दायरों की वजह से कई साहित्य प्रेमी चाहकर भी आस्वादन नहीं कर पाते हैं। ऐसी विडंबना को अनुवाद ने पूर्णविराम लगा दिया है। बहुभाषिक समाज में अनुवाद का विशिष्ट महत्व है। अनुवाद के माध्यम से पाठकों को अपनी भाषा में ही भिन्न भाषाओं के साहित्य को पढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बहुभाषायी परिवेश में भिन्न भाषा भाषियों को भारतीय साहित्य के आस्वादन का वरदान अनुवाद के माध्यम से देने वाले अनुसृजकों का योगदान अभिनंदनीय है। भिन्न भाषाभाषियों के बीच भारत में एक सशक्त संपर्क भाषा की भूमिका हिंदी निभा रही है। किसी भी भारतीय या विदेशी भाषा के साहित्य का अनुवाद यदि हिंदी भाषा के साहित्य का अनुवाद यदि हिंदी में हो जाता है तो उसका अनुवाद कई सारी भारतीय भाषाओं होने का रास्ता खुल जाता है। 

ओड़िया और ओड़िशा की कई भाषाओं-बोलियों के साहित्य को हिंदी में अनूदित करके श्री दिनेश कुमार माली ने साहित्य जगत की बड़ी सेवा निरंतर कर रहे हैं। उन्हीं के माध्यम से संबलपुरी-कोसली भाषा के साहित्य के रत्न हलधर नाग जी का सुपरिचय हिंदी जगत को सुलभ हो पाया है। मैं इस बात को रेखांकित करने के लिए दुहराना चाहता हूँ कि भारत की किसी भी भाषा में रचित साहित्य को हिंदी में अनूदित होने से उसे व्यापक धरातल प्राप्त हो जाता है। तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद के क्रम चल पड़ने में हिंदी अनुवाद संजीवनी का काम करता है।  संबलपुरी-कोसली भाषा के मधुर कवि हलधर नाग जी की कविता अब भारतीय भाषाओं तथा दुनिया की भाषाओं में होना सुनिश्चित है। इसका श्रेय क्रमशः श्री दिनेश कुमार माली तथा सुरेंद्रनाथ जी को जाता है। सुरेंद्रनाथ जी ने हलधर जी के काव्य का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया है, इससे दुनिया की भाषाओं में हलधर के काव्य का सौरभ फैलना संभव हो पाया है। श्री दिनेश जी के योगदान से भारतीय भाषाओं में हलधर नाग जी की काव्य-सरिता प्रवाहित होना सुनिश्चित है।

कवि हलधर नाग का नाम आज भारतीय साहित्य में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपनी कविताओं के माध्यम से हलधर नाग जी ने पश्चिम ओड़िशा की बहु उपेक्षित भाषा संबलपुरी-कोसली में प्राण फूँक कर नई पहचान प्रदान की है। सत्तर वर्षीय हलधर नाग जी ने तीन दशकों में अविस्मरणीय साहित्यिक योगदान दिया है। पौराणिक-मिथकीय पात्रों को लेकर सामयिक चेतना के साथ महाकाव्यों की सर्जना के अलावा कई समकालीन मुद्दों पर मुक्तकों की सर्जना में भी सदा वे सक्रिय हैं। उनकी वैचारिक दुनिया के विभिन्न आयामों पर अनुसंधान व विमर्शों की बड़ी गुंजाइश के क्रम में ओड़िशा के संबलपुर विश्वविद्यालय में उनके व्यक्तित्व-कृतित्व व उनके काव्य के विभिन्न आयामों पर अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। श्री दिनेश कुमार माली द्वारा उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद के क्रम में उनके सृजन व वैचारिकता पर हिंदी में विमर्श सहज संभव हो गया। हलधर नाग जी की सर्जना पर हिंदी में ऐसे विमर्श को शुरू करने का श्रेय पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय को जाता है। फरवरी, 2021 में पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में यह बात भी उभरकर सामने आयी है कि हलधर नाग का सृजन संसार अत्यंत विशाल है। उनकी वैचारिकी के ढेर सारे आयाम हैं और विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों की सर्जना के साथ उनकी सर्जना की तुलना की भी बड़ी गंजाइश है। हलधर नाग जी की सृजन-यात्रा व वैचारिकी पर विमर्श के लिए एक संगोष्ठी या एक पुस्तक काफ़ी नहीं है। उनके व्यापक वैचारिक संसार के विभिन्न आयामों पर अनंत आलोचना-विमर्श की अपेक्षा व गुंजाइश है।

हलधर नाग जी सादा जीवन उच्च विचार के जीवंत उदाहरण हैं। वैश्विक चिंतन के साथ स्थानीय स्तर पर योगदान सुनश्चित करने वाले हलधर मौखिक परंपरा के मधुर कवि रत्न हैं। उन्होंने आज तक 20 महाकाव्य और असंख्य कविताओं का सृजन किया है, वे सभी उन्हें ज़ुबानी याद हैं। जहाँ भी वे अपनी कविता गाते हैं, वहाँ हज़ारों काव्य-प्रेमी इकट्ठे हो जाते हैं। उनकी इस लोकप्रियता की वजह से सहज ही वे 'लोककवि रत्न' के नाम से प्रसिद्ध हैं। अपने व्यक्तित्व-कृतित्व से वे इतने प्रभावशाली बन गए हैं कि ‘पद्मश्री’ उपाधि वरण करना, विश्वविद्यालयों की मानद डॉक्टरेट का अलंकरण अपने आप संभव हो गया। 

हलधर का जन्म 1950 में ओडिशा के बरगढ़ जिले में एक ग़रीब परिवार में हुआ था। जब वे 10 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु के साथ उनका संघर्ष शुरू हो गया। तब उन्हें मजबूरी में तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। घर की अत्यंत विपन्न स्थिति के कारण मिठाई की दुकान में बर्तन धोने पड़े। दो साल के बाद गाँव के सरपंच ने हलधर को पास ही के एक स्कूल में खाना पकाने के लिए नियुक्त कर लिया जहाँ उन्होंने 16 वर्ष तक काम किया। आगे उन्होंने बैंक से 1000 रुपये का ऋण लेकर स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और बच्चों की खान-पान की चीज़ों की एक छोटी सी दुकान शुरू कर दी।

वर्ष 1990 में हलधर ने पहली कविता ‘ढोड़ों बरगाछ’ (अर्थ: 'पुराना बरगद') नाम से लिखी, जिसे एक स्थानीय पत्रिका ने छापा और उसके बाद हलधर की सभी कविताओं को पत्रिका में जगह मिलती रही और वे आस-पास के गाँवों से भी कविता सुनाने के लिए बुलाए जाने लगे। लोगों को हलधर की कविताएँ इतनी पसंद आईं कि वे उन्हें ‘लोक कविरत्न’ के नाम से बुलाने लगे। उनके क़रीबियों ने यह जानकारी भी दी है कि हलधर जी अपने गाँव में ‘कालिया’ के नाम से जाने जाते थे और गाँव में विभिन्न उत्सवों पर वे लोकनृत्य करते थे। लोक कलाकार से कवि के रूप में उनका विकास और उनकी लोकप्रियता ने उन्हें ‘लोक कविरत्न’ बन दिया। इन्हें 2016 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। ऐसे जीवित किंवदंती को ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014), लाइफ़ अचीवमेंट सम्मान (2017) और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया जाना हम सभी के लिए गर्व और गौरव का विषय है। 

संबलपुरी भाषा के बहुत सारे कवि उन्हें अपना आदर्श मानकर उनकी काव्य-शैली का अनुकरण कर रहे हैं, जिसे साहित्यिक भाषा में ‘हलधर धारा’ कहा जाता है। संबलपुर विश्वविद्यालय में हलधर नाग की कविताओं का एक संकलन ‘हलधर ग्रंथावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है और कई शोधार्थी उनके काव्य-प्रदेयों पर अनुसंधान कार्य कर चुके हैं और कई अनुसंधानरत हैं। 

हलधर द्वारा विभिन्न काव्यों की सर्जना, उसमें उनके वैचारिक आयामों के महत्व के परिप्रेक्ष्य में उनके काव्यों का अध्ययन, अनुशीलन, आलोचनात्मक विश्लेषण, तुलना की बड़ी प्रासंगिकता है। अपनी सर्जना की लोकप्रियता की वजह से वे सहजतः ‘लोक कवि’ सम्मानपूर्ण संज्ञा के अधिकारी बन गए और लोगों की जुबानी पर भी उनकी कविता तांडव कर रही है। भविष्य में उनकी कविता लोक साहित्य कहलाए - इसमें कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं। आमतौर पर लोक साहित्य किसी व्यक्ति द्वारा लिखा नहीं होता है। हलधर नाग की कविता में लोक साहित्य की आत्मा बसती है। उनकी कविता में लोक-कविताओं के कई अभिलक्षण हैं। काव्य की सहजता, साधारण जन जीवन के दृश्य, नैसर्गिकता, अनुभूतिजन्यता, प्रकृति की अनुगूंज, जुबानी कवि के रूप में जनसामान्य की संवेदना भी उनकी कविता की वस्तु बन गई है। लोक के तमाम प्रतीकों को अपनी कविता में स्थान देते हुए वे सहज लोक कवि सिद्ध हुए हैं। लोक साहित्य के तमाम अभिलक्षण उनकी कविता की अनूठी संपदा साबित हो रहे हैं। उनकी भावनाओं में राष्ट्र रंग है, विश्व संग की कामना भी है। अतः सहज ही वे लोक कवि हैं।

हलधर नाग की प्रमुख कृतियाँ

1. लोकगीत 2.सम्पर्द 3.कृष्णगुरु 4. महासती उर्मिला 5. तारा मन्दोदरी 6.अछिया 7. बछर 8. शिरी समलाई 9.वीर सुरेन्द्र साई 10. करमसानी 11.रसिया कवि (तुलसीदास की जीवनी) 12.प्रेम पाइछन 13. राति 14. चएत् र सकाल् आएला 15. शबरी 16. माँ 17. सतिआबिहा 18. लक्ष्मीपुराण 19. सन्त कवि भीमभोई 20. ऋषि कबि गंगाधर 21 भाव 22. सुरुत 23. हलधर ग्रंथावली-1 (फ्रेंड्स पब्लिशर्स, कटक) 24.हलधर ग्रंथावली -2 (संबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित)

हलधर नाग की रचनाओं का अंग्रेज़ी व हिंदी में उपलब्ध अनुवाद

हलधर नाग जी की संबलपुरी-कोसली काव्यों और कविताओं का श्री सुरेंद्र नाथ ने अंग्रेज़ी में अनुवाद प्रोजेक्ट काव्यांजलि के तहत किया है, और ये अनुवाद संकलन ‘काव्यांजलि’ के शीर्षक से चार भागों में जेनिथ पब्लिशर्स, कटक से प्रकाशित हुए हैं। हिंदी के लेखक, ओड़िया हिंदी के बीच सेतु श्री दिनेश कुमार माली ने हलधर नाग के दो महाकाव्यों तथा अन्य कविताओं का हिंदी में अनुवाद ‘हलधर नाग का काव्य-संसार’ के नाम से किया है, यह कृति पांडुलिपि प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। 

हलधर नाग जी के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने नाग नंगे पैर ही रहते हैं। हिंदी सिनेमा के विख्यात गीतकार गुलजार ‘वर्चुअल भारत’ शृंखला में बनी डाक्यूमेंटरी फिल्म में उनके बारे में कहते हैं, “जब यह कवि अपने गाँव की ज़मीन पर चलता है तो लगता है पूरे ग्लोब पर चलता है और जब यह ख़ुद से कहता है, यही लगता है इस ग्लोब पर बसे हर इंसान से बातें करता है। वह ख़ुद से कहता है—समुद्र से निथारी/माँ की छाती से बही/अमृत की बूंद/कवि की कलम पर उतरी है।”

पद्मश्री एवं पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित द्विभाषी (ओड़िया एवं अंग्रेज़ी) लेखक मनोज दास उनके बारे में लिखते हैं, “हलधर नाग के काव्य के अजस्र-स्रोत का प्रवाह अनवरत है, जिसे कोई नहीं बाँध सकता है, काव्य में उनके द्वारा प्रयुक्त अलंकारों का बेहतरीन प्रयोग पाठकों के समक्ष अद्भुत काल्पनिक छबि प्रस्तुत करती है।”

उत्कल विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी प्राध्यापक, जतींद्र कुमार नायक उन्हें विलियम कार्लोस मानते हुए लिखते हैं, “हलधर नाग की कविताएँ पाठकों को नई आवाज़ और नई संवेदना प्रदान करती हैं, जिससे वे जीवित मनुष्यों की आवाज़ से जुड़ पाते हैं, जो जन सामान्य की रोज़मर्रा की भावनाओं में अथाह गहराई से प्रतिध्वनित होती हैं। ग्लोबलाइज़ेशन की इस दुनिया में, जहाँ आजकल स्थानीय भाषा का अवमूल्यन होता जा रहा है, वहाँ हाशिए पर रह रहे लोगों के जीवन की रोज़मर्रा की मुहावरेदार भाषा के प्राचुर्य को उत्सव के रूप में मनाने की नितांत आवश्यकता है। हलधर नाग की शबरी पर आधारित रामायण का अविस्मरणीय पात्र हमें विलियम कार्लोस के इस महत्वपूर्ण कथन की याद दिलाता है कि स्थानिकता में ही केवल सार्वभौमिकता है।”

अनूठी काव्य प्रतिभा के धनी हलधर नाग जी की काव्य-चेतना के कई आयाम हैं। उनकी संवेदना का संसार भी व्यापक है। प्रकृति आराधक हलधर माटी, मनुष्यता के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है। अपनी माटी से जुड़े रहने और इंसानियत के लिए समर्पित कवि की चेतना और संवेदना का धरातल काफ़ी व्यापक होता है। हलधर का काव्य इसका प्रमाण है। पीड़ितों की पक्षधरता हलधर के काव्य का पर्याय है। पीड़ितों, शोषितों, अन्याय को झेलने के लिए विवश लोगों के पक्ष में खड़े होकर जब वे नज़र आते है, उनकी प्रतिरोधी चेतना उनके काव्य में सहजतः उभरकर सामने आती है। किसानों, श्रमिकों, संघर्षरत हर इंसान, हर प्राणि के पक्ष में हलधर दलील देते नज़र आते हैं। हलधर नाग के साहित्य के अध्येता यह साबित कर चुके हैं कि उनकी कविता में काव्यशास्त्रीय दृष्टि से पूर्व और पश्चिम में प्रचलित कई अलंकारों व अन्य काव्य तत्वों का उन्होंने सहजतः प्रयोग किया है। ध्यातव्य है कि इन सभी काव्य-कौशलों का अध्ययन हलधर जी ने कहीं औपचारिक शिक्षा के क्रम से नहीं किया है। काव्य की उनकी सहज प्रतिभा कई अध्येताओं को विस्मित कर देती है। सर्जना के सहस्रों सूक्ष्म कोणों में कवि हलधर कई कोणों के पारखी साबित हुए हैं। उनकी काव्य प्रतिभा, चेतना और उनके काव्य कौशल का उत्थान, मौखिक परंपरा की अनूठी धारणा आदि पहलुओं के आलोक में अध्ययन-अनुशीलन, अनुसंधान, तुलनात्मक विश्लेषण के भी अवसर बढ़ चुके हैं। ऐसी कई विशिष्टताओं के कारण उनके सृजन पर हिंदी सहित सभी भाषाओं में समीक्षात्मक अध्ययनों, अनुसंधानों, आलोचनात्मक कृतियों के प्रकाशन का रास्ता खोलने का कार्य पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने किया है। फरवरी, 2021 की राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के कोने-कोने से कई विद्वानों ने भागीदारी की। कई शोध-आलेख प्रस्तुत हुए। संगोष्ठी में प्रस्तुत आलेखों के संग्रह के रूप में यह पुस्तक आपके हाथ में है।

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय) भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में एक है जिसका साढ़े तीन वर्षों का गौरवपूर्ण इतिहास है। वैश्विक क्यूएस रैंकिंग में दुनिया के गिने-चुने हज़ार विश्वविद्यालयों में पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय एक है। पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग अपनी रजत जयंती पूरी करके शीघ्र ही तीन दशक पूरा करने की दिशा में अग्रसर है। विश्वविद्यालय के विभागों में एक गतिशील विभाग के रूप में हिंदी विभाग सदा सक्रिय रहते हुए भाषा, साहित्य सर्जना, समालोचन, शिक्षण, अनुसंधान कार्यों में उत्कृष्ट निष्पादन हासिल कर रहा है। विभाग समकालीन साहित्यिक विमर्शों को संबंल देने की दृष्टि से कई मुद्दों पर नियमित रूप संगोष्ठियों, सम्मेलनों, कार्यशालाओं, परिचर्चाओं, व्यख्यानों का आयोजन सुनिश्चित कर रहा है।  ऐसे प्रकाशन निश्चय ही उपयोगी हैं। ऐसे आयोजनों की कार्यवाहियों का प्रकाशन भी सुनिश्चित किया जा रहा है ताकि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उपयोगी साबित हो। 

हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय द्वारा दि.6-7 फरवरी, 2021 को ‘हलधर नाग के काव्य-संसार के परिप्रेक्ष्य में लोक-साहित्य पर विमर्श’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आचार्य गुरमीत सिंह जी ने किया और उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता भी की।  उन्होंने उद्घाटन सत्र में ही ‘हलधर नाग का काव्य-संसार’ कृति का भी लोकार्पण किया। ध्यातव्य है कि कविवर हलधर नाग की चयनित कविताओं के हिंदी अनुवाद की यह पहली कृति है। हिंदी के लेखक, ओड़िया हिंदी के बीच सेतु श्री दिनेश कुमार माली ने यह अनुवाद कार्य किया है। कवि हलधर नाग जी की कविताओं पर हिंदी में विमर्श की शुरूआत का श्रेय भी इसी कृति को जाता है। 

इन पंक्तियों के लेखक के संयोजन में आयोजित संगोष्ठी में श्री दिनेश कुमार माली, डॉ. चित्तरंजन मिश्रा, डॉ. लक्ष्मी नारायण पाणिग्रही, डॉ. द्वारिकानाथ नायक, डॉ. सुजित कुमार पृसेठ, डॉ. सुरेंद्रनाथ, डॉ. मुरारी लाल शर्मा, प्रोफेसर शांतनु सार , सुश्री शर्मिष्ठा साहू, श्री सुशांत कुमार मिश्र, श्री अनिल कुमार दास, श्री अशोक पुजारी, डॉ. पी.सी. कोकिला, डॉ. आरती पाठक, डॉ. प्रीतिलता, डॉ.ए.भवानी, डॉ.मैथिली राव, डॉ. सुधीर सक्सेना, डॉ. सुनीता यादव, डॉ. करुणा लक्ष्मी के.एस., श्री कमलकांत वत्स, श्री हेमंत कुमार पटेल, डॉ. भूषण पुआला, डॉ. मधु वर्मा, डॉ. कृष्णा आर्य आदि ने हलधर नाग जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य, प्रपत्र आदि पेश किये। अपनी बौद्धिक संपत्ति से संगोष्ठी को सफल बनाने में योग देनेवाले सभी विद्वान मित्रों का हार्दिक आभार व अभिनंदन।

इस पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, इस्पात मंत्रालय, भारत सरकार के माननीय केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान जी ने अमूल्य संदेश दिया है। पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आचार्य गुरमीत सिंह जी ने अपना बहुमूल्य संदेश दिया है। इन आत्मीय संदेशों से निश्चय ही इस पुस्तक की गरिमा बढ़ गयी है। मैं दोनों महानुभावों के प्रति परम आभारी हूँ।

इस पुस्तक की वस्तु का विस्तृत विवेचन मित्रवर दिनेश कुमार माली ने अपनी बात में की है। विद्वान प्रतिभागियों ने कई आयामों में हलधर नाग पर अनुसंधानात्मक, आलोचनात्मक दृष्टि से आलेखों का लेखन किया  है। संगोष्ठी के तमाम प्रतिभागियों, प्रपत्र वाचकों, वक्ताओं के प्रति मैं इस अवसर पर अपना हार्दिक आभर प्रकट कर रहा हूँ। उनके सक्रिय योगदान के बिना इस विमर्श की सफलता संभव ही नहीं थी। संगोष्ठी के लिए सहर्ष स्वीकृति देने और संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन से विमर्श को बल देने के लिए मैं माननीय कुलपति महोदय आचार्य गुरमीत सिंह जी के प्रति श्रद्धापूर्वक नतमस्तक हूँ। आयोजन में मेरे साथ देने के लिए विभाग की सह आचार्या दीदी डॉ. पद्मप्रिया, अतिथि प्राध्यापिका डॉ. अनिता सिंह, शोधार्थियों व छात्रों के प्रति मैं अपना हार्दिक आभार प्रकट कर रहा हूँ। इस ऑनलाइन गोष्ठी को सफल बनाने के लिए विभाग के कार्यालय में सहायिका श्रीमती ई.आर. संध्या और मेरी सुपुत्री सुश्री सी. श्री वैष्णवी का बड़ा योगदान रहा है, उनके प्रति मेरा अपार स्नेह है। संगोष्ठी के अवसर पर ओड़िशा के विद्वान मित्रों से सहयोग प्राप्त, ओडिया में लिखे लेखों का अनुवाद करने, छपाई के लिए लेखों का संयोजन करने आदि कार्यों में पूर्ण सहयोग भाई श्री दिनेश माली जी से मिला, उनके योगदान के प्रति मेरी असीम श्रद्धा है। संगोष्ठी में स्वयं पधारकर हलधर नाग जी ने अपना पूरा समय दिया। काव्य प्रस्तुति के साथ-साथ सभी प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं की संतुष्टि की है। यह इस संगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। कविवर हलधर नाग जी के प्रति तथा उनको तकनीकी सहयोग देनेवाले मित्र श्री अशोक पुजारी, डॉ. लक्ष्मी नारायण पाणिग्रही, डॉ. द्वारिकानाथ नायक आदि के प्रति मैँ अपनी आंतरिक श्रद्धा प्रकट करता हूँ।

प्रकृति, माटी और मनुष्यता के प्रति हलधर नाग जी की पूर्ण प्रतिबद्धता है। अपनी माटी के प्रति उनके समर्पण के आलोक में उनके सम्मान में हर वर्ष हलधर नाग सम्मान से विभूषित करने का निर्णय व घोषणा इन पंक्तियों के लेखक ने ‘युग मानस’ की ओर से किया है। युवा सर्जना को प्रोत्साहित करने व अपनी माटी के प्रति हलधर जी की चेतना को व्यापकता प्रदान करने और युवा पीढ़ी में स्फूर्ति पैदा करने की दृष्टि से इस पहल का अपना महत्व है। हलधर नाग जी के 70 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में तीस वर्षों से उनके अनूठे साहित्यिक अवदान के आलेक में उनके सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ के प्रकाश की योजना भी उनके हितैषी साहित्य प्रेमियों ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में हलधर नाग जी की सर्जना पर विवेचन, व्यक्तित्व पर विवेचन के अलावा उनकी कविताओं का तीस भाषाओं में अनुवाद भी शामिल किए जाएँगे।

हलधर नाग जी की सर्जना के विविध आयामों पर हिंदी में विमर्श का यह पहला प्रयास है। कई सीमाओं, चुनौतियों के बावजूद यह सफल रहा है। यह पुस्तक इसी का सबूत है। भविष्य में विमर्शों की बड़ी गुंजाइश को भी यह पुस्तक स्पष्ट कर रही है।  कई विद्वानों के समन्वित बौद्धिक विमर्श के इस दस्तावेज पर पाठकों के अमूल्य विचारों का हार्दिक स्वागत है।

(डॉ. सी. जय शंकर बाबु)
संस्थापक संपादक, युग मानस, 
प्रधान संपादक, आंतर भारती,
अध्यक्ष (प्र.), हिंदी विभाग,
पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय,
पुदुच्चेरी – 605 014
पुदुच्चेरी,
दि.29.6.2021

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