हलधर नाग के लोक-साहित्य पर विमर्श (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
संदेश
दिनांक 21.06.2021
मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी हो रही है कि पांडिचेरी विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग संबलपुरी-कोशली भाषा के प्रसिद्ध कवि पद्मश्री ‘हलधर नाग के लोक-साहित्य पर विमर्श’ नामक पुस्तक का प्रकाशन करने जा रहा है। इससे पूर्व दिनांक 6 और 7 फरवरी 2021 को पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ. जयशंकर बाबू के समन्वय-सौजन्य से राजस्थान निवासी संप्रति ओड़िशा के तालचेर कोयलांचल में कार्यरत मुख्य प्रबन्धक (खनन) श्री दिनेश कुमार द्वारा हलधर नाग की कविताओं पर आधारित उनकी अनूदित पुस्तक ‘हलधर नाग का काव्य-संसार’ के विमोचन के परिप्रेक्ष्य में ‘लोक साहित्य पर विर्मश’ विषय पर एक ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसमें देश के कोने-कोने से हिन्दी, ओड़िया, अंग्रेज़ी भाषा के आधिकारिक विद्वानों, साहित्यकारों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया था, उस संगोष्ठी की अध्यक्षता करने का मुझे गौरव प्राप्त हुआ था। वह दिन पांडिचेरी विश्वविद्यालय के इतिहासमें स्वर्ण-अक्षरों में लिखा जाएगा कि राष्ट्रीय पटल पर विभिन्न भारतीय भाषाओं के विपुल पाठक वर्ग और साहित्यकारों को संबलपुरी-कोशली भाषा से परिचित होने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ था। संगोष्ठी में प्रस्तुत आलेखों का संकलन इस पुस्तक के रूप में सामने आना सराहनीय प्रयास है। शैक्षिक जगत के लिए यह सर्वेत्तम भेंट है।
विश्व की किसी भी सभ्यता के आविर्भाव, विकास और यहाँ तक कि पतनोन्मुखी गतिविधियों का मुख्य दस्तावेज़ साहित्य ही होता है। विश्व के महान साहित्यकारों और उनकी अमूल्य कृतियों ने हमेशा से मानव जीवन के विकास का मार्गदर्शन किया है और समाज में सत्य, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, करुणा, परोपकार, शान्ति आदि मानवीय मूल्यों को स्थापित करने में महती भूमिका अदा की है, जो कि किसी भी सभ्यता के पर्यवेक्षण के प्रमुख घटक होते हैं।
सृष्टि की सबसे पहली कविता करुणा से ही पैदा हुई। जब आदि महाकाव्य ‘रामायण’ के रचियता वाल्मीकि मुनि ने शिकारी द्वारा आहत नर क्रौंच पक्षी की मृत्यु पर मादा क्रौंच को हृदयवेधक विलाप करते देखा तो उनके भीतर करुणा के भाव जागृत हुए और दुनिया की पहली कविता संस्कृत भाषा में रामायण के रूप में अवतरित हुई। इस तरह आदि युग से साहित्य मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन रहा है।
आधुनिक युग में इसी परंपरा के प्रतीक कवि हलधर नाग न केवल ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ वाली उक्ति को चरितार्थ करते हैं, वरन् वैश्विक साहित्य की उत्कृष्टता और शाश्वत मूल्यों के ध्वज-वाहक रूप में भी अपने आपको स्थापित करते हैं। उनकी जन्म-भूमि है ओड़िशा के बरगढ ज़िले का घेंस गाँव। यह वह धरती है, जो इतिहास में अपनी शूरता-वीरता के लिए विख्यात है, जहाँ माधो सिंह जैसे स्थानीय ज़मींदार का पूरा परिवार देश की आज़ादी के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ़ सशस्त्र लड़ाई करते-करते शहीद हो गया। गोस्वामी तुलसीदास की तरह हलधर नाग का जीवन भी संघर्षां से भरा रहा, बचपन से ही घोर-गरीबी, सामाजिक भेद-भाव और समाज में मान्यता के अभाव से जूझने वाले दुर्दिनों की मर्मस्पर्शी अनकही कथाओं के रूप में, मगर साहित्यिक रचनात्मक लेखन के प्रति अत्यधिक रूझान तथा सर्जनशीलता की वजह से उन्हें अपने वे दिन पार करने में सहायता मिली। न केवल सहायता, वरन् उनके साहित्यिक सफ़र ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें विशिष्ट मुक़ाम प्रदान किया।
उनका साहित्यिक सफ़र शुरू हुआ, स्थानीय छोटे-मोटे सामाजिक सांस्कृतिक और साहित्यिक समारोहों में अपनी मुखस्थ काव्य-कविताओं के अद्भुत आशु गायन के माध्यम से। धीरे-धीरे उनका यह सफ़र बढ़ता चला गया और देखते-देखते वे संबलपुरी-कोसली भाषा अत्यधिक सम्मानित, सर्वाधिक लोकप्रिय कवि और लोक कवि रत्न के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उनकी साहित्यिक कृतियों में भारतीयता की सम्पूर्ण झलक मिलती है, भारतीय परंपरा, सांस्कृतिक, मिथक, किंवदती और लोक-कथाओं में छिपे सनातन शाश्वत मूल्यों का समावेश विश्व पटल पर हमारी महान सांस्कृतिक विरासत की अमिट छाप छोड़ती है। जहाँ उनकी पहली साहित्यिक कृति ‘ढोडो बरगाछ’ में जीवन की क्षण-भंगुरता नज़र आती है, वहीं उनकी लेखनीय कृति ‘महासती उर्मिला’ में रामायण के उपेक्षित चरित्र उर्मिला को सर्वोच्च सम्मान देकर भारतीय साहित्य को नई दिशा प्रदान की है। उनके काव्य रामायण और महाभारत आदि उपाख्यानों से समृद्ध हैं।
शुरू से ही हमारा देश ‘अनेकता में एकता’ की खान रहा है। न केवल वेशभूषा, रहन-सहन, भौगोलिक परिवेश की विविधता, बल्कि भाषायी विविधता भी हमारे देश की अनमोल धरोहर रही है। यह पूर्ण सत्य है, भारतीय सभ्यता की समृद्धि विभिन्न भाषाओं की समृद्धि पर ही आधारित है। हमारे देश के प्रमुख साहित्यकारों के पारस्परिक संवाद और अनुवाद-विधा के माध्यम से उनकी कृतियों के आदान-प्रदान से हमारा देश अभी तक एकता के सूत्र में आबद्ध है।
पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय की पहल पर प्रकाशित हलधर नाग पर केंद्रित पुस्तक में देश के विख्यात आधिकारिक विद्वानों के शोध-पत्र शामिल किए गए हैं, जो निश्चित रूप से शोधार्थियों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों के लिए अमूल्य रत्न साबित होगा।
अंत में, मैं उन सभी विद्वानों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ और विशिष्ट धन्यवाद देना चाहूँगा, इस संगोष्ठी के समन्वयक और हमारे विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सी. जय शंकर बाबु और उनके लेखक अनुवादक मित्र दिनेश कुमार माली, जिन्होंने शोध-पत्रों के संकलन के साथ-साथ उनकी प्रयोगधर्मिता की सूक्ष्मता से जाँच करने में अथक प्रयास किया है, यही कारण है कि आज यह पुस्तक आपके हाथों में है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक भारतीय साहित्य के लिए अनमोल धरोहर साबित होगी तथा साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने के लिए साहित्य-जगत में ख़ूब सराही जाएगी।
इस पुस्तक की अपार सफलता व उपयोगिता की कामना करते हुए . . .
(आचार्य गुरमीत सिंह)
आगे : हलधर नाग की सर्जना पर एक सार्थक… >>लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
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- भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
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- मुस्लिम परिवार की दुर्दशा को दर्शाता अनवर सुहैल का उपन्यास ‘मेरे दुःख की दवा करे कोई’
- मेरी नज़रों में ‘राजस्थान के साहित्य साधक’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- व्यक्ति चित्र
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
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- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- मानव-मनोविज्ञान के महासागर से मोती चुनते उपन्यासकार प्रदीप श्रीवास्तव
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- अनूदित कहानी
- बात-चीत
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
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- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
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