पेड़ की शीतल हवा
अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
पेड़ की शीतल हवा, अब चाहता है धूप में
चाँदनी का अक्स भी, वो ढूँढ़ता है धूप में
वो परेशाँ है मगर, फिर भी सुकूँ भरपूर है
गाँव ने मुझको दिया क्या, सोचता है धूप में
वो मुसाफ़िर ढूँढ़ता अपना पता कुछ इस तरह
छाँव में कुछ पल ठहर कर भागता है धूप में
रास्ते उसके अलग हैं,और मंज़िल भी अलग
घर चलाने के लिए वो घूमता है धूप में
देखकर उसकी दशा तस्वीर नम होने लगी
रोज़ वह तस्वीर माँ की सेंकता है धूप में