जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
सुदर्शन कुमार सोनीजैसे ही सायं के पाँच बजे, हाँ बाईस मार्च 2020 के और लोगों ने थाली पीटना, ताली बजाना, शंख, घंटे घड़ियाल बजाना शुरू किये कि हम लोग बुरी तरह कन्फ्यूजिया गये। हमारी जगह कोई भी होता तो उसके साथ भी यही होता। तुम हमसे कुछ शेयर मत करो बस व्हाटस् एैप पर दिन भर शेयर करते रहो।
घंटे घड़ियाल की आवाज़ से हम सयान श्वान जन को तो यह लगा कि कुछ न कुछ बवंडर हो गया है या कि होने वाला है। इसलिये हम सरपट एक तरफ़ को भागे, लेकिन जिधर को भी भागें तो बस वही थाली, ताली, घंटे, घड़ियाल की ध्वनि का स्वर चहुँओर तो हम क्या करते। यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ को भागते रहे। और इसका हरामीपन देखो कि उधर घर की बालकनी पर थाली घंटा घड़ियाल लिये खड़ा हमें अनहोनी की आशंका में एक सुरक्षित ठौर की तलाश में बदहवास भागते देख तबियत से ठहाके मार रहा था! अरे हम क्या बकरियाँ गाय तक भाग रहीं थीं। परिंदे पंख फड़फड़ाकर दुबक गये थे। छिपकलियाँ तस्वीरों की आड़ में छिप गयीं थीं। गिलहरी जो तार पर फुदक रही थी गिरते-गिरते बची।
हम लोग क्या करते। अब कोई नाली में घुस गया तो कोई किसी कार के नीचे जा छुपा। तो कोई बस बदहवास यहाँ से वहाँ भागता ही रहा। सड़कों में पता नहीं क्या बात आज थी कि पहले से ही सुनसान थीं। और जब हम सब लोग यहाँ-वहाँ छिप गये तो यही सड़कें जो हमारे कारण कुछ आबाद थीं किसी भुतहा शहर की सड़कें लगने लगी। लग रहा था कि सारे इंसानों को म्यूनिसपलटी वाले गाड़ियों में पकड़-पकड़ कर ले गये हों जैसे! हम तो नाली में, कार के नीचे छिपे बस इनकी ये अजीब हरकत देखते रहे। कोई ताली तो कोई थाली तो कोई पूजा की घंटी या शंख बजाते बस बजाते ही जा रहा था।
इस सिलसिले के थमने के बाद हमने डोडो बँगले के कुत्ते से जाकर टोह ली तो उसने भौं-भौैंं कर कुछ इशारा किया। जिसका लब्बो-लुआब ये निकला कि कोई एक वायरस जो कि इत्ता छोटा की आँखों से दिखता भी नहीं, से ये लोग भयभीत हैं। अरे चींटी के हाथी पर भारी पड़ना तो सुना था। पर ये आँखों से दिखाई न देने वाले पिद्दी के इंसान पर ऐसा भारी पड़ना नहीं सुना था। पर कहते हैं कि पिद्दी बहुत ख़तरनाक है तथा आज भोपाल सहित पूरे देश में जनता कर्फ़्यू लागू है।
इसी बीच कालू आ गया; भौं-भौं कर जैसे पूछा कि ये जनता कर्फ़्यू क्या है?
डोडो ने सिर उठा भौं-भौ फिर उउ-आ-उउ कर बताया कि ’यह मनुष्यों का मनुष्यों के लिये मनुष्यों द्वारा किया गया एक तरह का स्वः आईसोलेशन था।’ सबके सब घर के अंदर ही थे तो पहले समझा कि संडे की छुट्टी होने से सब आराम फ़रमा रहे होंगे।
अब तक हनुमान मंदिर के पीछे रहने वाला टायगर काला भुजंग लेब्राडोर भी आ गया था। आते ही सिर ऊपर कर जमकर भौं-भौं कर प्रकाश डाला, वैसे इस समय तक सायं के सात का अँधेरा हो गया था, कि ये कोई को-रोना वायरस से आतंकित हैं। उसी से बचने का यह एक उपाय है।
डोडो बोला कि यही बात यह समय रहते बता देते तो क्या हम जो इनके साथ सदियों से रहते वफ़ादारी निभाते आये हैं तो अभी भी क्या काम नहीं आते?
अब लिंडा कहीं से निकलकर आ गयी थी। पीछे कीचड़ में सना टिंडा आ रहा था, ने घबराहट भरी भूउउ-भूउउ कर बताया कि दो घंटे पहले ग़ज़ब का शोर हुआ मैं और टिंडा सो रहे थे। एक साथ आवाज़ होने लगी तो जिधर को समझ आया उधर को भागे। कोई जगह नहीं मिली तो वो संचार कालोनी के पास से बह रहे नाले में घुस गये। वो आगे छह सात कुत्ते और रहते हैं वे भी गैराज के पीछे को दुबक गये।
डोडो अब बोला कि यार तुम लोगों का तो ठीक है कि जनता कर्फ़्यू में भी प्रेशर वगैरह की समस्या नहीं रही होगी। अपन ने ठूँस-ठूँस कर आज खाया था। तीन बजे दोपहर से दबाव का तनाव बना हुआ था। लेकिन ये शाम को पता चला कि जनता कर्फ़्यू के नाम पर हमें बाहर नहीं ले जा रहे थे।
“अरे ये तो नाइंसाफ़ी सॉरी ना-कुत्ताई हो गयी!” टायगर बोला। “आख़िर फिर कैसे प्रेशर रिलीज़ किया डोडो भाई?”
“कैसे किया पूरे घर को शेर की तरह दहाड़ कर सिर पर उठा लिया कि जल्दी से ले जा रहे हो कि फिर मैं अपना कुत्तापन दिखाऊँ!” वैसे एक बात गाँठ में बाँध कर रखना; आज का इंसानपना अपन लोगों के कुत्तेपना से ख़तरनाक है। इस पर सारे कुत्तों के कान खडे़ हो गये पूँछ लहराना बंद हो गयी!
“फिर क्या हुआ?” अब एक पैर से लंगड़ा कालू बोला। एक कार ने इसको दो साल पहले टक्कर मारी थी, एक पैर गया काम से तो अब यहाँ से जितनी कारें निकलती हैं उनको दौड़ाना अपना कर्तव्य समझता है। और समझता है कि कार वाला उसके दौड़ाने के कारण जान बचाकर तीव्र गति से भाग रहा है।
टायगर बोला कि लेकिन एक बात तो बताओ कि ये थाली पीटने, ताली बजाने के पीछे का कारण क्या है?
अरे कोई कह रहा है कि इससे एक ऐसी ध्वनि आवृत्ति पैदा होगी कि वो क्या कहते हैं रोना वायरस भाग जायेगा। डोडो ने कहा। हाँ पर कोई कह रहा था कि ये जो अपनी जान जोखिम में डालकर डयूटी कर रहे हैं उन सबके सम्मान की ख़ातिर है।
कालू बोला, “रोना नहीं कोरोना डोडो नाम बिगाड़ना तो कोई तुमसे सीखे!”
“ये भी कोई बात हुयी? यदि ऐसा ही है…” इससे पहले कि कालू अपनी बात पूरी कर पाता, बाजू के एक घर से जर्मन शैफर्ड की बहुत तेज़ यहाँ से वहाँ दौड़ने व भौंकने की आवाज़ आयी।
टायगर बोला कि ये क्या कहना चाह रहा है। बाहर क्यों नहीं आता दिन भर घर में घुसा रहता है। इसका थोबड़ा महीनों नहीं दिखता। जनता कर्फ़्यू कोई हम लोगों के लिये कौन है?
टिंडा बोला कि वह कह रहा है कि मनुष्य को ये एक विशेष आवृत्ति की ध्वनि निकालनी थी तो हम लोगों को एक इशारा भर कर देते। मालिक ने हमें ऐसा ज़बरदस्त कंठ दिया है कि हम यदि समवेत स्वर में भौंक देते तो सारे वो रोना वायरस रो रहे होते। किसी का हाथ कट के गिर गया होता तो किसी की गर्दन तो किसी के पैर कट गये होते। हम महान वफ़ादारों को ये हर काम में बराबर का साझीदार क्यों नहीं बनाते? आज रात से रोज़ बारह बजे अपन सब समवेत स्वर में भौंक कोरोना को मौत का रोना सिखाते हैं। पर डोडो कह रहा है कि ये डयूटी करने वाले स्वास्थ्य पुलिस प्रशासन आदि के सम्मान के लिये है।
ये वार्तालाप चलते चलते रात के नौ बज गये थे। श्वानों ने इस उम्मीद के साथ कि मनुष्य उन्हें किसी भी आपदा कि आईंदा से समय पर सूचना दे उन्हें विश्वास में लेगा। कहा इस संकट की घड़ी में श्वान समुदाय साथ है। सब ने अपनी-अपनी पूँछ धीरे-धीरे दायें-बायें हिलायी और भूऊऽऽ-भूऊऽऽ-भूऊऽऽ- गाना गाते जिसका शब्दार्थ था ’कोरोना अब तेरे को रोना है केवल और केवल रोना है और हमेशा के लिये मौत की नींद सो जाना है।’ अपने अपने ठिये की ओर चार पैर बढ़ा दिये।
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