वाह-वाह संप्रदाय के तबलीग़ियों से
धर्मपाल महेंद्र जैनमैं कई दिनों से बड़ा काम करने के बारे में सोच रहा था। बड़ा सोचने में कुछ ख़र्च नहीं होता, न पैसा, न बुद्धि। कोरोना के भय और लॉकडाउन के पालन में मुझे वास्तविक दुनिया से दूर रहना पड़ा तो मैंने आभासी दुनिया अपना ली। जितना ज्ञान मुझमें भरा था सब सोशल मीडिया के हवाईजहाज़ों में लाद-लाद कर मित्रों और अमित्रों पर उड़ेल दिया। बदले में, उन्होंने भी मुझे अपने ज्ञान से सराबोर कर दिया। सब जगह ज्ञान ही ज्ञान पसरा था, हम दुनिया में ज्ञानोना फैलाने लगे थे। मुँह पर मास्क लगा था और हाथों पर पारदर्शी दास्ताने थे। मैं एक पोस्ट से दूसरी पर कूदे-फाँदे जा रहा था। लोग वाह-वाह किए जा रहे थे, बधाई दिए जा रहे थे और मैं धर्मगुरु की तरह दोनों हाथों से बटोरे जा रहा था। भावावेश में मैंने दूसरों का ज्ञान अपने नाम से बाँट दिया। किसने, किसका ज्ञान, किसके नाम से बाँटा यह तो आलोचक ही बताएँगे पर हमने कोरोना के संकटकाल में फ़ालतू का बहुत ज्ञानोना फैलाया और कथित ज्ञान वालों की विश्वव्यापी जमात बना ली। अब हमें अपनी भूमिका में थोड़ा बदलाव करने की ज़रूरत है।
हम ज्ञानवानों के धर्म अलग-अलग हैं पर हमारा संप्रदाय एक है, वाह-वाह संप्रदाय। हम इसके तबलीग़ी हैं, प्रचारक हैं। दुनिया में अकेले हमारी ही जमात है जो सच्चे वाह-वाह संप्रदाय का पालन करती है। हम विचारक हैं, कलाकार हैं, साहित्यकार हैं, हम भले समाज को आईना दिखाते हैं पर जब ख़ुद पर आती है तो एक दूसरे की परस्पर, समान मात्रा में प्रशंसा करते हैं, बधाई देते हैं। संस्कृत का एक श्लोक हमारा आदर्श है, जिसमें विवाह में आमंत्रित गधे को ऊँट कहता है आप कितना मधुर गाते हैं गर्दभराज। शर्म से सफ़ेद हो गधा ऊँट को कहता है आप भी तो बहुत सुंदर हैं उष्टराज।
उष्टाणां च विवाहेषु गीतम् गायन्ति गर्दभाः।
परस्परं प्रशंसंति अहो रूपम् अहो ध्वनि॥
ऐसा भाव प्रणव श्लोक साहित्य अकादेमी की स्थापना के पहले से ही अस्तित्व में है, इसलिए कृपया इसे साहित्य-कला अकादमियों से नहीं जोड़ें।
ज्ञान के वायरस ज्ञानोना को कोरोना की तरह तेज़ी से फैलाने में हमारे हाथों के अलावा सबसे बड़े हाथ ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप के हैं। ये मल्टीनेशनल कंपनियाँ इसी से खाती-कमाती हैं। इंटरनेट की दुनिया में ज्ञानवानों के मरकज़ कई जगह पर हैं, पर हमारे बड़े-बड़े मरकज़ इन तीन जगहों पर हैं। आप विश्वास मानिये हम अपने इन मरकज़ों में किसी भी तबलीग़ी को ग़लत ज्ञान नहीं देते। कोई किसी की डीपी या फोटो पर जाकर नहीं थूकता। खुले आम गालियाँ देने की वाह-वाह संप्रदाय में सख़्त मनाही है, पीठ पीछे निंदा करना और आलोचना करना तो मानव स्वभाव है, इसलिए इस पर हमारी रोक नहीं है। किसी के डीपी या पर फोटो पर पत्थरबाज़ी करने से मोबाइल या मॉनिटर की स्क्रीन टूट जाने का ख़तरा है इसलिए हमारा कोई भी तबलीग़ी पत्थरबाज़ी करने की सोच ही नहीं सकता। तबलीग़ी कालिदास नहीं होते कि वे जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही काट डालें। हमारा कोई तबलीग़ी सोच से नंगा हो सकता है, कभी शब्दों के अनुचित चयन से नंगा हो सकता है, पर वह कपड़े उतार कर अपनी पौरुषी फोटो संपादक को नहीं भेज सकता और न ही सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकता है। हम पहले से ही भौतिक रूप से सोशल डिस्टेंसिंग बना कर आत्मिक रूप से दिन-रात जुड़े रहे हैं। मुझे अपने वाह-वाह संप्रदाय के तबलीग़ी साथियों पर ज़रूरत से ज़्यादा गर्व है इसलिए मैं हमारी भूमिका में थोड़े से बदलाव की बात कर रहा हूँ।
लॉकडाउन से डरे कमज़ोर तबक़े के, दिहाड़ी करने वाले, अंध और अल्प-विश्वासी लोगों ने पूरे देश को ख़तरे में डाल दिया। कहीं भूखे तो कहीं मज़हब की झूठी आड़ लेने वाले कट्टरपंथी अपने गंदे विचारों के साथ कोरोना फैलाते, ब्रेन वाश करते, छिपते फिरे। कोरोना वायरस हमारे कुछ महान राजनेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों की तरह अपनी कुर्सी पर स्थिर रहता है। श्रद्धालु लोग आते हैं, वे वायरस का स्पर्श करते हैं तो वह भूत की तरह उन्हें लग जाता है। वायरस न धर्म देखता है न आर्थिक संपदा, वह तो बस अज्ञानी देखता है, जो उसे छुए या उसके क़रीब आये उसे संक्रमित कर देता है। हमारी फलती-फूलती दुनिया को सबसे ज़्यादा ख़तरा इन जानबूझकर बने अज्ञानियों से है। यदि हम बेरोज़गारी और अशिक्षा के वायरस को पालते रहे तो लोग अफ़वाहों को सच समझ कर अफ़रातफ़री करते रहेंगे।
नागरिक अपनी सरकार और समाज पर ही विश्वास नहीं कर सके, अविश्वास का ऐसा ख़तरनाक और ज़हरीला वायरस बेरोज़गारी और अशिक्षा ने फैलाया है। इस वायरस का असर पीढ़ियों तक रहता है। बेरोज़गारी और अशिक्षा के ख़िलाफ़ ऐसी ही जंग हो, इसके लिए आपको अपनी क़लम और मुँह से मास्क हटाने होंगे। कोरोना का लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद आप बेरोज़गारी और अशिक्षा के ख़िलाफ़ ज्ञानोना फैलाने के लिए अपना अमूल्य समय लुटायेंगे तो साहित्य व सोशल मीडिया समाज के चौकीदार भी हो जायेंगे।