विरहन के विरह-सा दूषित-व्यथित पर्यावरण चाहता है स्पर्श- प्रेमी के समान प्रेम में शर्त नहीं होती यह तो देता है- जीवन जैसे वृक्ष देते छाँव-हवा नदी गाती है प्रवाह के सुर में प्यास बुझाने वाले गीत बिन किसी अनुबंध ही।