मदमस्त इंद्र गौतम भी वैसा ही सशंकित क्रुद्ध किन्तु, राम हो गया तटस्थ द्रष्टा संभवतः ; स्पर्श करना भूल गया है इसीलिए शिलाएँ अब पुनः अहल्या नहीं बन पाती टूटती-पिसती हैं हो जाती हैं -धूल।