हे प्रिय! मेरा यह जीवन जेठ माह की पहाड़ी पगडण्डी-सा जला दिया गया एक-एक वृक्ष पोखर सूखे, धारे सूखे मर गयी जिजीविषा दूर-दूर तक पंथी न पंछी तुम मेरे संग चलना तो दूर मुझे निहारना भी नहीं चाहते।