बह जाने दो

20-04-2014

आज मेरे सब दुःख दर्द तुम
अश्रु में बह जाने दो
भरे घाव में रक्त रवानी
अब मुझको सहलाने दो
बचपनकी यादों में ख़ोकर
भूल सभी कुछ जाने दो
खेल-खेलकर दिनभर यूँ ही
नटख़ट सी कहलाने दो
माँ की ममता के आँचल में
छुप छुप कर खो जाने दो
थक कर के फिर गोद में उसकी
सिर रख़कर सो जाने दो
शीत लहर छू गई हो जैसे
तन में थिरकन आने दो
मंद मंद मैं चलूँ पवन सी
दुल्हन सा शरमाने दो
आज मेरे सब दुःख दर्द तुम
अश्रु में बह जाने दो
गगन चुम्बी इच्छाओं को मेरी
अमर बेल बन जाने दो
आज न रोको मुझे तुम ऐसे
मन मुखरित हो जाने दो
पिंजर द्वार खोल दो सारे
खुले गगन उड़ जाने दो
सतरंगी रंगों में ढलकर
गुंचों सा खिल जाने दो
आज मेरे सब दुःख दर्द तुम
अश्रु में बह जाने दो
पुष्पों की पंखुङी में मुझको
खुशबू सा बस जाने दो
पात-पात और डाल-डाल पर
भँवरों सा मँडराने दो
वर्षा की बूँदों की भाँति
वसुधा से टकराने दो
हरा भरा ये जग हो सारा
खेतों को लहलहाने दो
अल्हड़ बाला सी मैं नाँचू
मस्ती में रम जाने दो
ढलते सूरज की लाली को
मन के भीतर आने दो
शीत लहर में सर्द धूप सी
तन मन को छू जाने दो
कल-कल करती सरिता को तुम
पथ अपना अपनाने दो
आज मेरे सब दुःख दर्द तुम
अश्रु में बह जाने दो
बाँधो न मुझको झील सा तुम
सागर से मिल जाने दो
जाग-जाग कर बुने सपनों को
नयनों में बस जाने दो
आज न भींचो अधरों को तुम
प्रणय-गीत अब गाने दो
बाहुपाश में प्रियतम के अब
पिया मिलन हो जाने दो
आज न रोको मुझ को कोई
पानी सा बह जाने दो
अश्रु पूर्ण आँखों में मेरी
आस-किरण जग जाने दो
आज मेरे सब दुःख दर्द तुम
अश्रु में बह जाने दो॥

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