उदासियाँ
फाल्गुनी रॉयविरक्तियों से भरा दिन
बोझिल खिजलाया सा मन
और चीज़ों से रंग उड़ा सा है
ये पीले फूल,
उड़ते परिंदे,
उजला रोशनदान,
सरसराती हवा,
ठहरा हुआ सा पहर
सब फीका-फीका और रंगहीन।
एक अजीब सी निराशा लौटकर आती है
हर जगह से,
एक गम्भीर सी उदासी छाती है
हर वजह पे
और बरस रही है
दूर-दूर तक
उदासियाँ, उदासियाँ, उदासियाँ . . .