दुःख
फाल्गुनी रॉय
धरती भर गई है
चटकदार पीले फूलों से
गुलज़ार हैं सेमल, सरसों और पलाश
हवाओं में फैली है महक आम मंजरियों की
ये कैसी ऋतु आई है
मौसम है राग, रंग और उत्सव का
और मैं देख नहीं पाऊँगा तुम्हें
इस बार भी
चूम नहीं पाऊँगा तुम्हारे माथे को
न थाम पाऊँगा तुम्हारी हथेली
बीत रहा है वसंत
रीत रहा है मन
बीतते हुए इस वसंत भी
मैं कर नहीं पाऊँगा तुम्हें प्यार
जीवन का एक और वसंत बीत जायेगा
तुम्हारे बग़ैर।