एक अप्रेमिक के लिए

01-07-2023

एक अप्रेमिक के लिए

फाल्गुनी रॉय (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मूल लेखक: तस्लीमा नसरीन (एक अप्रेमीकेर जोन्नो) 
अनुवाद:फाल्गुनी रॉय

 
इसी शहर में तुम भी रहोगे 
काम-बेकाम दौड़ोगे इधर उधर
कहीं अड्डा मारोगे अवसर में
दारू पियोगे, ख़ूब हो-हल्ला करोगे
सो जायेगी रात 
पर तुम नहीं सोओगे। 

फ़ुर्सत मिले कभी किसी शाम तो
ये घर वो घर खाने जाओगे, खेलने जाओगे
कौन जाने हो सकता है 
खोलने जाओगे आहिस्ता आहिस्ता किसी की साड़ी 
मेरे ही आँगन पार कर के
किसी घर में। 
 
हो सकता है इसी मोहल्ले में चलना फिरना हो दो बेला
हाथों की पहुँच पे ही रहोगे
हो सकता है कभी जता दोगे मुझे कि पास ही हो
सिकुड़ती रहूँगी, कतरा-कतरा काटती रहूँगी ख़ुद को
न मिलने के दुख में, फिर भी बोलूँगी नहीं आओ
बोलूँगी नहीं, 
तुमको मौक़ा नहीं दूँगी बोलने का कि समय नहीं है तुम्हारे पास
या बहुत व्यस्त हो तुम हाल फ़िलहाल
तुम्हारे अप्रेम से ख़ुद को बचाऊँगी मैं
तुमसे मेरा मिलना नहीं होगा। 
 
साल गुज़रेंगे, तुमसे मिलना होगा नहीं मेरा
मिलना न होते होते भूलती रहूँगी, 
तुम्हारे साथ मिलना ठीक कैसा था
किस रंग की शर्ट पहनते थे तुम
हँसने से तुम ठीक कैसा दिखते थे
बात करते वक़्त नाखून काटते 
आँखों की ओर या कहीं और ताक़तें
पैर हिलाते, घड़ी घड़ी कुर्सी छोड़ कर उठते
पानी पीते कि नहीं, भूलती रहूँगी। 
 
बहुत सारे साल गुज़र जायेंगे
तुम्हारे साथ मेरा मिलना और नहीं होगा
एक ही शहर, फिर भी मिलना नहीं होगा
राह भटक कर भी 
कोई किसी के रास्ते की ओर नहीं चलेगा
हमारे रोग-व्याधि होंगे, मिलना नहीं होगा
किसी रास्ते के मोड़ पर या पेट्रोल पम्प पर
या मछली की दुकान में, पुस्तक मेला में, रेस्टोरेंट में
कहीं भी मिलना नहीं होगा। 
 
और भी बहुत सारे साल गुज़र जाने पर, 
सोच रखा है मैंने
हड़बड़ाती हुई उजालों का एक झुंड लेकर 
शाम जिस दिन दाख़िल होती रहेगी मेरे निर्जन घर में
जिस दिन बालकनी में खड़े होने पर मेरा आँचल उड़ाएगी
उद्दंड बैशाखी
जिस रात एक आकाश चाँद के साथ बातें करूँगी 
सारी रात
तुमको मन ही मन बोलूँगी उस दिन
कि ऐसा होता है न मिलने पर? 
न मिलने पर लगता है मानो जिया नहीं जा सकता है! 
कौन कहता है जिया नहीं जा सकता, 
देखो आराम से जिया जा सकता है
 
तुमसे मिलना हुआ नहीं है कुछ हज़ार बरसों से
तो फिर बोलो क्या ज़िन्दा नहीं थी
आराम से थी
सोच रखा है बोलूँगी
तुम तो कुछ हो असल में, कुछ नहीं के जैसे
अपनी आकांक्षाओं से उकेरी थी तुम्हें 
अपनी आकांक्षाओं से तुमको प्रेमिक किया था
और अपनी आकांक्षाओं से तुमको अप्रेमिक भी किया है
तुमको न देखे लाखों साल जी सकती हूँ
अप्रेमिक को न छुए अनंतकाल तक
 
एक बूँद पानी आँखों का, बरसात के पानी सा झर कर
धो सकता है अब तक की उकेरी सभी तस्वीरें
तुम्हारा नाम, धाम झट से मिटा सकता है 
आँखों का पानी, 
तुमको विलीन कर सकता है
 
मुझे अकेला मत समझना कभी भी
तुम्हारा अप्रेम मेरे साथ साथ रहता है। 

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