तुम्हारे प्यार से

31-05-2008

पुर सकूँ होती है रुह मेरी तेरे दीदार से।
बन गये आँसू मेरे मोती, तुम्हारे प्यार से॥
 
मैं निष्ठुर तन्हाई के सूखे में व्याकुल था मगर।
तुम सघन-सावन-सरिस, बरसे सरस-रसधार-से॥
 
ज़िन्दगी मे छा रहा था इक अजब पतझार-सा।
आ खिलाये फूल ख़ुशियों के बसंत बहार से॥
 
हम पुकारें तुमको क्या कहकर हमें बतलाइये।
लगते हो वैसे तो तुम मुझको मेरे संसार से॥
 
रोशनी कब तक अरे! रहती भला इस दीप की।
जल रहा यह "दीप" तेरे स्नेह के आधार से॥

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