सच्ची बात लगे बुरी
आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’भोली सूरत नीयत बुरी।
मुँह में राम बगल में छुरी॥
ढोंगी बदलें काँचुरी।
चल सपनीली चातुरी॥
छाती पै ही दलते मूँग।
हर मछली पै मारें ठूँग॥
चक्का जाम किया भक्ति का
बगुले भक्त, हैं धर्मधुरी।
कुत्ते सब कुछ सूँघ रहे।
भगत आलसी ऊँघ रहे।
नहीं किसी को खबर कोई,
बजे चैन की बाँसुरी॥
जम जाते मंचों पै भाँड,
पी पी करके फ़ोरेन ब्रांड।
हरे खेत में जैसे सांड,
सच्ची बात लगे बुरी॥
भौंडे भजन फिलमिया धुन।
कान पक गये हैं सुन-सुन॥
धंध है जागे की रात,
खुलें पर्स की पाँखुरी॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अनुपमा
- अभिनन्दन
- उद्बोधन:आध्यात्मिक
- कलयुग की मार
- कहाँ भारतीयपन
- जवाँ भिखारिन-सी
- जाग मनवा जाग
- जीवन में प्रेम संजीवन है
- तुम्हारे प्यार से
- तेरी मर्ज़ी
- प्रेम की व्युत्पत्ति
- प्रेम धुर से जुड़ा जीवन धरम
- मधुरिम मधुरिम हो लें
- माँ! शारदे तुमको नमन
- राष्ट्रभाषा गान
- संन्यासिनी-सी साँझ
- सदियों तक पूजे जाते हैं
- हसीं मौसम
- हिन्दी महिमा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-