सदियों तक पूजे जाते हैं
आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’माफिक मौजों में कश्ती, नौसिखिये भी खे लेते हैं।
सहज डगर पर लूले भी चल बैशाखी से लेते हैं।
जो सीमा पर दुश्मन की गोली सीने पे खाते हैं।
वही जंगजू वही सही अर्थों में मर्द कहाते हैं।
ऐसे ही साहसी वीर पतझर में फूल खिलाते हैं।
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
लहराता है परचम उनका अंबर चाँद-सितारों पर
थर्राती है धरती बस केवल उनकी हुँकारों पर।
यों तो घुटनों के बल नन्हें बालक भी चल लेते हैं
अरे! चींटियों के दल तो कायर दल भी दल लेते हैं ।
पर सिंहों के दाँत गिनें जो वही मर्द कहाते हैं।
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
मिट जाते जो "दीप" स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को
नमन उन्हें है जो लौटा लाते हैं गई बहारों को ।
फैला करके हाथ जहाँ में झुक जाना तो आसां है
बहते दरिया से पानी पी प्यास बुझाना आसां है।
नित्य खोद कर नये कुएँ जो सबकी प्यास बुझाते हैं
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अनुपमा
- अभिनन्दन
- उद्बोधन:आध्यात्मिक
- कलयुग की मार
- कहाँ भारतीयपन
- जवाँ भिखारिन-सी
- जाग मनवा जाग
- जीवन में प्रेम संजीवन है
- तुम्हारे प्यार से
- तेरी मर्ज़ी
- प्रेम की व्युत्पत्ति
- प्रेम धुर से जुड़ा जीवन धरम
- मधुरिम मधुरिम हो लें
- माँ! शारदे तुमको नमन
- राष्ट्रभाषा गान
- संन्यासिनी-सी साँझ
- सदियों तक पूजे जाते हैं
- हसीं मौसम
- हिन्दी महिमा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-