अभिनन्दन
आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’दिया नेक वारि-दान वट-द्रुम-दल-को औ,
गुरुकुल वाटिका जिलाये खूब हरि हैं।
हरियाली हरि-तृतीया है ये निराली अहो,
महिमा अनूठी दिखलायें खूब हरि हैं॥
काट छाँट डाले कोटि-कोटि कष्ट कण्टक हैं,
फूल खुशियों के ये खिलाये खूब हरि हैं।
सहृदय हृदय है हरि दर्श पाके ’दीप’
हरे हरि हरि से मिलाये खूब हरि हैं॥
हरि के इशारे बिना इस जहाँ में किसी के,
जीवन का नहीं चला स्पन्दन है करता।
प्राणों का भी प्राण प्रानी पाते सभी ऋण हरि,
बिन कौन प्राणी यहाँ स्पन्दन करता॥
चन्द नहीं चन्दन है हरि भाव चन्दन है,
धूपदीप बिना ’दीप’ वन्दन है करता।
आनन्दित हो उठा है हरि दर्शन पाके तब,
नन्दन सुमन अभिनन्दन है करता॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अनुपमा
- अभिनन्दन
- उद्बोधन:आध्यात्मिक
- कलयुग की मार
- कहाँ भारतीयपन
- जवाँ भिखारिन-सी
- जाग मनवा जाग
- जीवन में प्रेम संजीवन है
- तुम्हारे प्यार से
- तेरी मर्ज़ी
- प्रेम की व्युत्पत्ति
- प्रेम धुर से जुड़ा जीवन धरम
- मधुरिम मधुरिम हो लें
- माँ! शारदे तुमको नमन
- राष्ट्रभाषा गान
- संन्यासिनी-सी साँझ
- सदियों तक पूजे जाते हैं
- हसीं मौसम
- हिन्दी महिमा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-