हिन्दी महिमा
आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’नहीं मात्रभाषा बल्कि मेरी मातृभाषा प्यारी
हिंदी हिंदुस्तान का हृदय हुलसाती है॥
खुसरो अमीर खानखाना वो अब्दुर्रहीम
सूर तुलसी कबीर काव्य कुल थाती है॥
भूषण भणे हैं इसी भाषा में कमाल लाल
छ्त्रसाल-यश, शिवा-बावनी गुँजाती है॥
खड़ीबोली लल्लूलाल भारतेंदु से निखर
विश्वभाषा बन रोम रोम पुलकाती है॥१॥
भारतमाता के भव्यभाल की है बिन्दी हिंदी
पहिचान आन बान शान स्वाभिमान है।
न्यारी प्राणप्यारी प्रजा सारी बलिहारी भव्य-
भाषा है हमारी दिव्य-देश हिंदुस्तान है॥
चमाचम चमकेगी चारु चंद्रिका सी शुचि
रुचिरा गंभीरा गिरा गरिमा महान है।
देवभाषा सुता भद्रभाव भूषिता है हिन्दी
होनी विश्वभाषा अरे दीप का ऐलान है॥२॥