ऋषभदेव शर्मा - 1 दोहे : 15 अगस्त

23-05-2017

ऋषभदेव शर्मा - 1 दोहे : 15 अगस्त

प्रो. ऋषभदेव शर्मा

1.
कटी-फटी आज़ादियाँ, नुचे-खुचे अधिकार। 
तुम कहते जनतंत्र है, मैं कहता धिक्कार!! 

2.
रहबर! तुझको कह सकूँ, कैसे अपना यार? 
तेरे-मेरे बीच में, शीशे की दीवार!! 

3.
मैं तो मिलने को गई, कर सोलह सिंगार। 
बख़्तर कसकर आ गया, मेरा कायर यार॥ 

4.
ख़सम हमारे की गली, लाल किले के पार। 
लिए तिरंगा मैं खड़ी, वह ले 'कर' हथियार॥ 

5.
षष्ठिपूर्ति पर आपसे, मिले ख़ूब उपहार। 
लाठी, गोली, हथकड़ी, नारों की बौछार॥ 

6.
ऐसे तो पहले कभी, नहीं डरे थे आप? 
आज़ादी के दर पड़ी, किस चुड़ैल की थाप?? 

7.
सहसा बादल फट गया, जल बरसा घनघोर! 
इसी प्रलय की राह में, रोए थे क्या मोर?! 

8.
चिड़िया उड़ने को चली, छूने को आकाश। 
तनी शीश पर काँच की, छत, कैसा अवकाश ?! 

9.
कहना तो आसान है, 'लो, तुम हो आज़ाद'! 
सहना लेकिन कठिन है, 'वह' जब हो आज़ाद!! 

10.
अपराधी नेता बने, पकड़ो इनके केश। 
जाति धर्म के नाम पर, बाँट रहे ये देश॥ 

11. 
कैसा काला पड़ गया, लोकतंत्र का रंग। 
अब ऐसे बरसो पिया, भीजे सारा अंग॥ 
 

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