हाँ, सोने के बँगले में, सोते हैं राजाजी

01-09-2023

हाँ, सोने के बँगले में, सोते हैं राजाजी

प्रो. ऋषभदेव शर्मा (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

(तेवरी)
 
हाँ, सोने के बँगले में, सोते हैं राजाजी
पर, चाँदी के जँगले में, रोते हैं राजाजी
 
नारद जी लेकर आए हैं ख़बर बहुत पक्की
धरती पर साकार ब्रह्म, होते हैं राजाजी 
 
श्वेत झूठ की वैतरणी में ख़ूब नहाए हैं
हरिश्चंद्र के कहने को, पोते हैं राजाजी
 
बहू-बेटियों की इज़्ज़त से कीचक खेल रहे
कभी न पर अपना संयम, खोते हैं राजाजी
 
बने धर्म अधिकारी लेकर न्यायदंड स्वर्णिम
सब अपनों के पाप-करम, ढोते हैं राजाजी
 
वह कबीर वाली चादर मैली कर डाली है
नित्य प्रजा के आँसू से, धोते हैं राजाजी
 
अध्यादेशों पर नाख़ूनों से अक्षर लिख कर
लोकतंत्र का जप करते, तोते हैं राजाजी
 
दान-पुण्य करके चुनाव का अश्वमेध करते
किन्तु नाश के बीज स्वयं, बोते हैं राजाजी

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
कविता
ललित निबन्ध
दोहे
सांस्कृतिक आलेख
स्मृति लेख
साहित्यिक आलेख
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में