नोट-शराब और खाना

01-11-2021

नोट-शराब और खाना

डॉ. रमा द्विवेदी (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

"अम्मा मैं दो दिन के लिए गाँव जा रही हूँ," मेड ने कहा। 

"क्यों जा रही हो अभी पिछले महीने ही तो गई थी?" मैंने कहा। 

"अम्मा वोट डालने जाना है, नहीं गए तो गाँव का लीडर नाराज़ हो जाएगा।" 

"अच्छा! यह बताओ तुम किसको वोट दोगी?" मैंने पूछा। 

उसने कहा, "जो पार्टी ज्यादा पैसे शराब और खाना देगी, हम उनमें से किसी एक को वोट डाल देंगे।" मेड ने बताया। 

मैंने पूछा, "क्या कई पार्टी से पैसे मिलते हैं?" 

उसने हँस-हँस कर बताया, "दो बड़ी पार्टी हैं, दोनों पाँच-पाँच सौ रुपये देती हैं साथ में दो बोतल शराब और दो पैकेट पुलिहारा देती हैं। वोट डालने वाले दिन सुबह-सुबह गरम-गरम इडली-वड़ा-उपमा और फिर दोपहर का खाना भी देती हैं।" 

मैंने कहा अच्छा, "तो तुम दोनों पार्टी से सब कुछ लेकर वोट किसे देती हो?"

मेड ने बताया, "वोट किसी एक को दे देते हैं। वोट तो एक बहाना है मेन बात तो नोट-शराब और खाना पाना है।" 

उसकी बात सुनकर मैं सोचने लगी– "क्या इसी तरह नेता लोग चुनाव जीतते हैं? और ग़रीब आदमी पाँच सौ रुपये, दो बोतल शराब और दो पैकेट पुलिहारा ले कर बिक जाता है।" 

क्षोभ और आक्रोश से भर कर मैं मन ही मन बुदबुदाई– "इस देश का भविष्य कितना दुर्भाग्यपूर्ण है?"

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