मुझको हरित बनाओ अब
डॉ. रमा द्विवेदीयह धरती अकुला रही, हमें तुम्हें बुला रही,
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही।
लगाओ पेड़-पौधे तुम, प्रदूषण को भगाओ तुम
पाओगे ताजी हवा, रोगों से मुक्ति पाओ तुम,
चेहरा रहे खिला-खिला यही हमें बता रही,
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥
जिसनें दिया तुम्हें जन्म है, उसको न यूँ सताओ तुम,
जन्मने का हक़ उसे भी दो, यूँ भ्रूण न मिटाओ तुम,
सृष्टि चलेगी उससे ही, बस बात यह बता रही।
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥
मुझ पर बनाते घर-मकां, मुझ पर बनाते हो महल,
मुझ पर उगाते अन्न-फल, मुझे रौंदते हो हर पहर,
मुझमें मिलोगे अन्त में, बस बात यह समझा रही।
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥
सदियों से रुदन कर रही, न सिसकियाँ तुमने सुनी,
जर्जर हुई हर साँस है, टूटेगी जाने किस घड़ी,
चेतावनी यह समझो प्रलय की घड़ी आ रही।
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही ॥
इतना सताओ न मुझे दुनिया में क़हर ढाऊँ मैं,
अपनी नहीं चिन्ता मुझे कैसे तुम्हें बचाऊँ मैं ,
इंसान ही के वास्ते, मैं खुद को थी मिटा रही।
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥
मुझ पर बढ़ा जो भार है, उसको जरा घटाओ तुम,
आतंक को तुम रोक दो, यूँ रक्त न बहाओ तुम,
खुशहाल हों सबही यहाँ, मैं मन्नतें मना रही,
मुझको हरित बनाओ अब, पुकार यह लगा रही॥