मेरे मित्र बनो न
भव्य भसीन
क्यों तुम भगवान बने रहते हो मेरे मित्र बनो ना।
न कुछ कहते हो न सामने बैठ
मेरे हाथों से भोग लगाते हो
थोड़ा तो एहसान करो न,
तुम भगवान न होकर मेरे मित्र बनो न।
मेरे मित्र बनो न।
मैं तुमसे ईश्वर का सम्बन्ध नहीं चाहती,
तुम्हारी प्रार्थना, तुम्हारी स्तुति नहीं चाहती,
चाहती हूँ तो संग तुम्हारा
तुम इतनी सी बात समझो न,
भगवान न होकर मेरे संग रहो न।
मेरे संग रहो न।
मेरे नयन सदा तुम्हारी आरती उतारते रहें,
मेरे हृदय में उमड़ता प्रेम सदा तुम्हारी सेवा करता रहे,
यूँ भगवान की तरह दरस देकर दूर न होना,
मुझे स्पर्श तो दो न
अपना स्पर्श तो दो न।
चाहे मुझे कोई धन सम्मान सहायता न देना,
किसी कष्ट को तुम हर न लेना,
करो तो इतना मेरा सर अपनी गोद में रख लेना,
भगवान न होकर मेरे प्रियतम बनो न।
मेरे प्रियतम बनो न।
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