अब मोसे और रहा नहीं जाए
भव्य भसीन
अब मोसे और रहा नहीं जाए
अब सखी और सहा नहीं जाए
पद पंकज बिनु हृदय है प्यासा
सेवऊ कैसे हाय कैसी निराशा
अब ये प्राण धरा नहीं जाए
अब सखी और सहा नहीं जाए।
तड़पत हिय हाय निसि दिन दुखे
कल सो नैना रो रो सूखे
नैना रे अंसुवन बहा नहीं पाए
अब सखी और सहा नहीं जाए
अब मोसे और रहा नहीं जाए।
साज़ सिंगार मैं कर लूँ पूरा
ओढ़ूँगी अब रंग सुनहरा
आधा अधूरा न उनको भाए
अब मोसे और रहा नहीं जाए
अब सखी और सहा नहीं जाए।
उनके लिए पीड़ा लाख हैं पाई
सब छोड़ा प्राण देने आई
अब ये पीड़ सही नहीं जाए
अब मोसे और रहा नहीं जाए
अब मोसे और॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अति प्रिय सुंदर
- अब मोसे और रहा नहीं जाए
- कभी आना मुझसे मिलने
- कहूँ कैसे?
- कोई मुझे प्रेम सिखा दे
- क्या तुम आओगे
- जब साँझ ढले पिय आ जाना
- बावरा कन्हैया
- मायूसी
- मेरा ख़्याल तो करते होंगे ना
- मेरे मित्र बनो न
- मैं और तुम
- मैं कुछ कविताएँ लिख रहा हूँ
- मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
- मैं श्मशान हूँ
- मोहे लाड़ लड़ाये कान्हा जी
- ये श्याम सखी बड़ी अटपट री
- रसिक सुंदर साँवरे
- सजनी मैं राह तकूँ
- सदा प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या?
- नज़्म
- विडियो
- ऑडियो
-