मायूसी
भव्य भसीन
मायूसी बेहिसाब आती है
जब भी तेरी याद आती है।
समझ नहीं आता करूँ तो क्या करूँ
जब रात उतावली हो जाती है।
आज की रात तुम मिल ही लेते तो अच्छा था
यूँ तो फिर एक रात ज़ाया हो जाती है।
पलटता हूँ कुछ जल्दी में ज़िन्दगी के पन्ने
विसाल-ए-यार लिखा है जहाँ
वही पन्ना मेरी किताब हो जाती है।
बड़ा मुश्किल है किसी को इस हद तक चाह लेना कि
अब तकलीफ़ जो है थोड़ी भी सही नहीं जाती है
न चाँद अच्छा लगता है न रात अकेली
आँख रात भर दुखती है
फिर दिन में खुल नहीं पाती है।
जीते जी अब कुछ मुकम्मल हो न हो मुझसे
मालूम है मौत लाजवाब तेरी बाँहों में आती है
कमबख़्त जान ये अब निकल क्यूँ नहीं जाती
कि तुम नहीं आते तुम्हारी याद बहुत आती है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अति प्रिय सुंदर
- अब मोसे और रहा नहीं जाए
- कभी आना मुझसे मिलने
- कहूँ कैसे?
- कोई मुझे प्रेम सिखा दे
- क्या तुम आओगे
- जब साँझ ढले पिय आ जाना
- बावरा कन्हैया
- मायूसी
- मेरा ख़्याल तो करते होंगे ना
- मेरे मित्र बनो न
- मैं और तुम
- मैं कुछ कविताएँ लिख रहा हूँ
- मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
- मैं श्मशान हूँ
- मोहे लाड़ लड़ाये कान्हा जी
- ये श्याम सखी बड़ी अटपट री
- रसिक सुंदर साँवरे
- सजनी मैं राह तकूँ
- सदा प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या?
- नज़्म
- विडियो
- ऑडियो
-