मायूसी

भव्य भसीन (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मायूसी बेहिसाब आती है 
जब भी तेरी याद आती है। 
समझ नहीं आता करूँ तो क्या करूँ 
जब रात उतावली हो जाती है। 
 
आज की रात तुम मिल ही लेते तो अच्छा था
यूँ तो फिर एक रात ज़ाया हो जाती है। 
पलटता हूँ कुछ जल्दी में ज़िन्दगी के पन्ने 
विसाल-ए-यार लिखा है जहाँ 
वही पन्ना मेरी किताब हो जाती है। 
 
बड़ा मुश्किल है किसी को इस हद तक चाह लेना कि
अब तकलीफ़ जो है थोड़ी भी सही नहीं जाती है 
न चाँद अच्छा लगता है न रात अकेली 
आँख रात भर दुखती है 
फिर दिन में खुल नहीं पाती है। 
 
जीते जी अब कुछ मुकम्मल हो न हो मुझसे 
मालूम है मौत लाजवाब तेरी बाँहों में आती है 
कमबख़्त जान ये अब निकल क्यूँ नहीं जाती
कि तुम नहीं आते तुम्हारी याद बहुत आती है। 

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